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श्रमण सूक्त
३४७
सुत्तस्स मग्गेण चरेज्ज भिक्खू सुत्तस्स अत्थो जह आणवेइ ।
(द चू २ ११ ग, घ )
भिक्षु सूत्रोक्त मार्ग से चले, सूत्र का अर्थ जिस प्रकार आज्ञा दे, वैसे चले ।
३४८
ह भो । दुस्समाए दुष्पजीवी ।
(द चू १ सू १ १)
अहो' इस दुख बहुत पाचवे आरे मे लोग बडी कठिनाई मे जीविका चलाते हैं ।
३४६
लहुस्सगा इत्तरिया गिहिण कामभोगा ।
(द चू १, सू १ २ )
गृहस्थो के कामभोग स्वल्प-सार-हित (तुच्छ) और अल्पकालिक हैं ।
४७६
३५०
अणागय नो पडिबध कुज्जा ।
(द चू २
१३ घ)
अनागत का प्रतिबन्ध न करे - असयम मे न वधे--निदान
न करे ।