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गोयरग्गपविट्ठो उ
वच्चमुत्त न धारए। ओगास फासुय नच्चा अणुन्नविय वोसिरे।।
(दस ५ (१) · १६)
भिक्षा के लिए उद्यत श्रमण मल-मूत्र की बाधा को न रखे। भिक्षा (गोचरी) करते समय मल-मूत्र की बाधा हो जाए तो)प्रासुक स्थान देख, उसके स्वामी की आज्ञा लेकर वहा मल-मूत्र का उत्सर्ग करे।
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