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श्रमण सूक्त
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२७४ जो पावग जलियमवक्कमेज्जा एसोवमासायणया गुरूण।
(द ६ (१) ६ क, घ) मानो कोई जलती अग्नि को लापता है, यह उपमा गुरु की आशातना करने वाले पर लागू होती है।
२७५ आसीविस वा वि हु कोवएज्जा एसोवमासायणया गुरूण।
(द ६ (१) ६ ख, घ) मानो कोई आशीविष सर्प को कुपित करता है, यह उपमा गुरु की आशातना करने वाले पर लागू होती है।
२७६ सिया हु से पावय नो डहेज्जा न यावि मोकखो गुरुहीलणाए।
(द ६ (१) ७ क, घ) कदाचित् अग्नि न जलाए, पर गुरु की अवहेलना से मोक्ष सम्भव नहीं।
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