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श्रम
२३५ गहणेसु न चिटेज्जा बीएसु हरिएसु वा।
(द ८ ११ क, ख) मुनि वन-निकुञ्ज के बीच, बीज और हरित आदि पर खडा न रहे।
२३६ तणरुक्ख न छिदेज्जा फल मूल व कस्सई।
(द ८ १० क, ख) मुनि तृण, वृक्ष तथा किसी भी फल या मूल का छेदन न करे।
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२३७ आमग विविह बीय मणसा वि न पत्थए।
(द ८ १० ग, घ) मुनि विविध प्रकार के सचित्त बीजो की मन से भी इच्छा न करे।
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