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श्रमण सूक्त
६७
सइ काले चरे भिक्खू कुज्जा पुरिसकारिय |
(द ५ (२) ६ क, ख )
मुनि समय होने पर भिक्षा के लिए जाए। पुरुषकार-श्रम
करे ।
ξε
तदुच्चावया
पाणा
भत्तट्ठाए
समागया ।
त-उज्जुय न गच्छेज्जा
जयमेव
परक्कमे ||
(द ५ (२) ७)
इसी प्रकार मुनि जहा नाना प्रकार के प्राणी भोजन के लिए एकत्रित हो मुनि उनके सम्मुख न जाए। उन्हे भय न हो, इस प्रकार यतनापूर्वक जाए।
६६
गोयरग्ग-पविट्ठो उ
न निसीएज्ज कत्थई ।
(द ५ (२) ८ क, ख )
गोरी के लिए गया हुआ मुनि गृहस्थ के घर मे न बैठे।
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