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________________ श्रमण सूक्त ७३ ज जाणेज्ज सुणेज्जा वा वणिमट्ठा पगड इम | त भवे भत्तपाण तु सजयाण अकप्पिय ।। (द ५ (१) ५१ ग, घ, ५२ क, ख ) मुनि यह जान ले या सुनले की भक्त पान वनीपको - भिखारियो के निमित्त तैयार किया हुआ है, तो वह भक्त - पान सयति के लिए अकल्पनीय होता है। ७४ मीसजाय च वज्जए । (द ५ (१) ५५ घ) मुनि मिश्रजात आहार न ले । ७५ ज जाणेज्ज सुणेज्जा वा समणट्ठा पगड इम । त भवे भत्तपाण तु सजयाण अकप्पिय । (द ५ (१) ५३ ग, घ, ५८ क, ख ) मुनि यह जान जाये या सुन ले कि भक्त-पान श्रमणो के निमित्त तैयार किया गया है तो वह भक्त पान सयति के लिए अकल्पनीय होता है। ३६३
SR No.034105
Book TitleShraman Sukt
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2000
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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