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श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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३२६ ।
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एगवीसाए सबलेसु
बावीसाए परीसहे। ने भिक्खू जयई निच्च से न अच्छइ मडले।।
(उत्त ३१ १५) ||
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जो भिक्षु इक्कीस प्रकार के शबल-दोषो और बाईस परीषहो मे सदा यत्न करता है, वह ससार मे नहीं रहता।
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३३१
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