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श्रमण सूक्त
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(२८४
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जो पव्वइत्ताण महव्वयाइ
सम्म नो फासयई पमाया। अनिग्गहप्पा य रसेसु गिद्धे न मूलओ छिदइ बधण से।।
(उत्त २०
३६)
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जो महाव्रतो को स्वीकार कर भलीभाति उनका पालन नहीं करता, अपनी आत्मा का निग्रह नहीं करता, रसो मे मूर्छित होता है, वह बन्धन का मूलोच्छेद नहीं कर पाता।
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