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श्रमण सूक्त
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_ श्रमण सूक्त (२७६
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जे वज्जए एए सया उ दोसे
से सुव्वए होइ मुणीण मज्झे। अयसि लोए अमय व पूइए आराहए दुहओ लोगमिणं ।।
(उत्त १७ : २१)
जो इन दोर्षों का सदा वर्जन करता है, वह मुनियो में सुव्रत होता है। वह इस लोक मे अमृत की तरह पूजित होता है तथा इस लोक और परलोक-दोनो लोको की आराधना करता है।