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श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त (२६८
धम्मलद्ध मिय काले
जत्तत्थ पणिहाणव। नाइमत्त तु भुजेज्जा बभचेररओ सया।।
(उत्त १६
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ब्रह्मचर्य-रत और स्वस्थ चित्त वाला भिक्षु जीवन-निर्वाह के लिए उचित समय मे निर्दोष, भिक्षा द्वारा प्राप्त, परिमित भोजन करे, किन्तु मात्रा से अधिक न खाए।
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