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_ श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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२२४
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तुलिया विसेसमादाय
दयाधम्मस्स खतिए। विप्पसीएज्ज मेहावी तहाभूएण अप्पणा।।
(उत्त ५:३०)
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मेधावी मुनि अपने आपको तोलकर, अकाम और सकाममरण के भेद को जानकर अहिंसा, धर्मोचित सहिष्णुता और तथाभूत (उपशान्त मोह) आत्मा के द्वारा प्रसन्न रहे, मरणकाल मे उद्विग्न न बने।
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