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श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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अभिवायणमझुट्ठाण
सामी कुज्जा निमतणं। जे ताई पडिसेवंति
न तेसि पीहए मुणी।। अणुक्कसाई अप्पिच्छे ___ अण्णएसी अलोलुए। रसेसु नाणुगिज्झेज्जा नाणुतप्पेज्ज पण्णव ।।
(उत्त २ ३८, ३६)
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अभिवादन और अभ्युत्थान करना तथा “स्वामी'-इस सबोधन से संबोधित करना-जो गृहस्थ इस प्रकार की प्रतिसेवना, सम्मान करते हैं, मुनि इन सम्मानजनक व्यवहारो की स्पृहा न करे। ___अल्प कषाय वाला, अल्प इच्छा वाला, अज्ञात कुलो से भिक्षा लेने वाला, अलोलुप भिक्षु रसो में गृद्ध न हो। प्रज्ञावान मुनि दूसरो को सम्मानित देख अनुताप न करे।
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