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श्रमण सूक्त
श्रमण युक्त (१८३
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आयरिएहिं वाहिन्तो
तुसिणीओ न कयाइ वि। पसायपेही नियागट्टी उवचिट्टे गुरु सया।।
(उत्त १ . २०)
आचार्यों के द्वारा बुलाए जाने पर किसी भी अवस्था में मौन न रहे। गुरु के प्रसाद को चाहनेवाला मोक्षामिलापी शिष्य सदा उनके समीप है।
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