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श्रमण सूक्त
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अणिएयवासो समुयाणचरिया अन्नायउछ पइरिक्कया य ।
अप्पोवही कलहविज्जणा य विहारचरिया इसिण पसत्था ।। (दस चू (२) ५)
अनिकेतवास (गृहवास का त्याग), समुदान-चर्या (अनेक कुलो से भिक्षा लेना), अज्ञात कुलो से भिक्षा लेना, एकान्तवास, उपकरणो की अल्पता ओर कलह का वर्जन- यह विहार चर्या (जीवन-चर्या) ऋषियों के लिए प्रशस्त है।
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