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________________ श्रमण सूक्त ६८ - % 3D अज्जिए पज्जिए वा वि अम्मो माउस्सिय त्ति य। पिउस्सिए भाइणेज्ज त्ति धूए नत्तुणिए ति य।। हले हले त्ति अन्ने ति । भट्टे सामिणि गोमिणि। होले गोले वसुले त्ति इत्थिय नेवमालवे।। नामधिज्जेण ण बूया इत्थीगोत्तेण वा पुणो। जहारिहमभिगिज्झ आलवेज्ज लवेज्ज वा।। (दस ७ - १५, १६, १७) हे आर्यिके . (हे दादी । हे नानी ।). हे प्रार्यिके । (हे परदादी ।, हे परनानी ।", हे अम्ब । (हे माँ.. हे मोसी।, हे युआ। हे भानजी । हे पुत्री । हे पोती । हे हले । हे हला हे अन्ने । हे भट्टे | हे स्वामिनी । हे गोमिनि । हे होले । हे गोले। हे वृषले -इस प्रकार स्त्रियो को आमत्रित न करे। किन्तु (प्रयोजनवश) यथायोग्य गुण-दोष का विचार कर एक बार या वार-वार उन्हें उनके नाम या गोत्र से आमत्रित करे। - - - -
SR No.034105
Book TitleShraman Sukt
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2000
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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