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वचन साहित्य - परिचय
(१३) साथ-साथ शैव 'लांछन ' का भी विधान है । 'लांछन ' वाह्य साधन अथवा चिन्ह है । दीक्षा के समय गुरू लिंगके साथ भस्म और रुद्राक्ष देता है । शिव वचन है कि " जिसके मस्तक पर भस्म है, गले में लिंग है, शरीर पर रुद्राक्ष है उसे शिवका ही रूप मानो ।" ( पा० प० १ श्लो० ४६ और प० ३० श्लो० १८ ) |
(१४) ऊपर लिखे हुए साधना मार्ग पर चलने वाले भक्तोंकी प्रगति, उन की योग्यता, तथा लक्षरण के अनुसार आगमकारोंने छः स्थलोंकी कल्पना की है । वह छः स्थल हैं (१) भक्त, (२) महेश, (३) प्रसादी (४) प्राणलिंगी, (५) शरण और (६) ऐक्य ।
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यह श्रंगस्थल कहलाते हैं । साधना पथका जीव 'अंग' कहलाता है । और 'शिव' को 'लिंग' कहते हैं । जैसे अंगके छः स्थल हैं वैसेही लिंगके भी छः स्थल हैं। ये है : (१) गुरुलिंग, (२) श्राचार लिंग, (३) शिवलिंग, (४) चरलिंग, ( ५ ) प्रसादलिंग, (६) महालिंग |
इसीलिए वीर शैव संप्रदाय के इस सिद्धांतको 'षट्स्थल - शास्त्र' कहा जाता है | इसे 'षट्स्थल साधन' भी कहते हैं ।
ये छः अंग स्थल और छः लिंग स्थल हैं । इसमें प्रत्येक अंगस्थल में छः लिंग स्थल तथा प्रत्येक लिंगस्थल में छः अंगस्थलकी कल्पना करके ३६ स्थल बनाये गये है | शिवागमों में यह दिखलाया है । सूक्ष्मागम तथा पारमेश्वरागम में लिखे गये मंत्रादिके लक्षरण में कुछ अंतर होने पर भी उनके सामान्य लक्षण स्पष्ट हैं। साधककी इन छः अवस्थाओं के सामान्य लक्षण संक्षेपमें निम्नलिखित हैं ।
जिसने देहादिका अभिमान त्याग दिया है वह 'भक्त' कहलाता है । निर्मल चित्तवाला साधक 'महेश' और शुद्ध चित्त "प्रसादि" है । जीव-भ्रम नष्ट होकर लिंग ही ग्रात्मा है ऐसा जिसको निश्चित वोध हुआ है वह 'प्राण लिंगी' है । शिवनित्यत्वके ज्ञानसे जो निश्चित होकर ग्रानंदमग्न रहता है वह 'शरण' है तथा जीव और शिवका ऐक्यानुभव करनेवाला भक्त 'ऐक्य भवत' है । यह सूक्ष्मागम का मंतव्य है ग्रव पारमेश्वरागमका विचार देखें |
पारमेश्वरागम के मत से तारतम्यसे गुरु, जंगम और लिंग पूजा करनेवाला 'भक्त' है । गुरुके शासनानुसार लिंगपूजा, जंगमपूजा करके स्वमताचरण करनेवाला 'महेश' है । विना लिंग पूजा और जंगम पूजाके अन्न ग्रहण न करने वाला 'प्रसाद' है । प्रारण, लिंग और शिव, इन तीनोंमें एकता अनुभव करने वाला 'प्रारण लिंगी' है । ईष्णा भय से मुक्त होकर एकांत में शिव ध्यानका साधक 'शरण' है । तथा इनमेंसे किसी साधना की आवश्यकता के सिवा 'सोऽहम् भावानुभवमें लीन 'ऐक्य' है ।