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वचन - साहित्य- परिचय
चाहिए । ऐसा करनेवालेको कोई पाप नहीं लगेगा वरन् शिवलोक प्राप्त होगा ।" यदि किसी कारणवश कोई शैव ऐसा न कर सकता हो तो उसको तुरंत उस स्थानको छोड़ देना चाहिए | शिव-निदकोंका संग पाप है । जो शिवके अतिरिक्त ग्रन्य देवताओं की पूजा करते हैं वह 'भवी' हैं । भवियोंके घर ग्रन्न ग्रहण करना पाप है । शिवागमकारोंका यह स्पष्ट मत है कि शैवोंको शैवानुगमके अनुयायियोंके अतिरिक्त अन्य किसीके संपर्क में नहीं थाना चाहिए। इससे उनकी शिवनिष्ठा में कोई अन्तर नहीं पड़ेगा | शिवानुगमके अनुयायियों के अतिरिक्त अन्योंके सम्पर्क में आने से उनकी शिव-निष्ठा में अन्तर पड़नेकी संभावना हो सकती है, जो पाप है ।
(८) सभी शिवागमोंकी दृष्टिसे शिव निष्कल, निकल, नित्य, अव्यय, सर्वगत, अनिंद्य, अनौपम्य, श्रनामय, कारणकारण है ( वा० प० १ श्लो०१६-२० ) । सच्चिदानन्द, स्वतः सिद्ध, निरंजन, शुद्ध, निर्गुण, निरुपाधिक, परंज्योति, सनातन, शाश्वतपुरुष, वेदवेदांतागोचर हैं ( सू० प० १श्लो० १६-१९ ) 1 शिवने सृष्टिकी रचना के लिए प्रावश्यक तत्वोंका निर्माण करनेका संकल्प स्वेच्छा से किया था। शिव के सहस्रांशसे पराशक्ति, पराशक्तिके सहस्रांशसे आदिशक्ति, इसी तरह आगे इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति तथा क्रियाशक्ति उत्पन्न हुई । ये पाँच शक्तियाँ निष्कल हैं । इन शक्तियोंको शिव सृष्टि कहते हैं । इसके बाद सदाशिव अथवा सादख्य तत्व उत्पन्न हुआ । उससे उत्पन्न पाँच तत्व सकल निःकल होते हैं । महेशको विराट पुरुष कह सकते हैं । क्योंकि उनके एक करोडवें अंशसे ब्रह्मा, विष्णु, सोम, सूर्य, अग्नि, वायु आदि उत्पन्न हुए । श्रागमों के अनुसार सृष्टि रचनामें कहीं ३६ तत्त्वों का तो कहीं २५ तत्त्वोंका उल्लेख मिलता है ।
परशिव के एक क्षुद्र से अंश से यह विश्व हुआ है । जीव इस सृष्टिका अंशांश है । इस दृष्टि से जीव सकल' तथा ग्रत्यंत क्षुद्र है । उसका आत्मत्व निः कल है | देहात्मत्त्वके कारण मनुष्य दुःखी है । अहंकार, कर्ममल आदि बंधन से मुक्त होना, 'देहरहित निःकल तत्त्व ही मैं हूँ' इसका अनुभव करना 'ज्ञान' है । देवीकालोत्तर आगमके ज्ञानाचार पटल में लिखा है, ज्ञान चक्षुसे अशरीरी आत्माको देखना ही परमानुभव है । पाशवद्ध हो जीव है, और पाशमुक्त सदाशिव ।
(e) इन पाशों से अथवा 'माया मल' 'कार्मिक मल' और 'आणव मल' इन मलोंसे मुक्ति कैसे मिलेगी ? इसकी क्या साधना है ? इन प्रश्नों के उत्तर में ग्रागमकार अत्यन्त स्पष्ट और आत्म विश्वास के साथ कहते हैं, 'ग्रनुभव युक्त सत्य ज्ञान से | वह ज्ञान कैसे प्राप्त करना चाहिए ? इसके लिए भी शिवागमकार निःशंक उत्तर देते हैं- "सगुण शिव भक्तिसे !"
१. सदेह । २. विदेह, देह रहित ।