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________________ वचनकारोंका सामूहिक व्यक्तित्व और जीवन परिचय . प्रतीत होता है कि चन्नमल्लेश्वर इनका इष्ट-देव है ! इसी प्रकार इनके एक वचन में यह आया है, "मेरे परमाराध्यने चन्नमल्लेश्वरकी मोयाको कुचल कर, मेरे तन, मन, धनका स्वामी बनकर......।" इस कथनसे संदेह होता है कि संभवतः परमाराध्य इनका गुरु हो । इन्होंने अपने वचन में साक्षात्कारका महत्त्व-प्रतिपादन किया है । साथ ही साय शरणों की स्थिति, शरणोंके अनुभव, शरणोंका सत्संग आदिका बखान किया है । इनके आध्यात्मिक वचन कुछ लंवे हैं और नीति पर लिखे हुए वचन सूत्रात्मक और सूक्ष्म हैं । इनके नीति विषयक वचनोंमें कुछ सुंदर सूत्र मिलते हैं । जैसे, "प्रणामके लिए ठहरो नहीं,” "निंदासे भागो नहीं," "दूसरोंको छलो नहीं," "मनुष्योंसे नहीं मांगना," "मनको बांध कर रखना," "मदको कुचल देना," "सप्त व्यसनोंको जला देना," आदि । इन्होंने साधना-जीवनके विधि-निषेधात्मक भी कुछ वचन कहे हैं। साथसाथ २२२ वचनों में ४०-५० गूढात्मक वचन भी हैं। इन्हें अपने गूढात्मक वचन प्रिय हैं और उन पर गर्व भी है । इन्होंने अपने एक वचनमें 'पुराने वाल्मीकमें नया सांप' ग्रादि कह करके 'इस गूढ़को खोलनेवाला कोई नहीं" ऐसा लिखा है। इनकी पत्नी बड़ी विदुषी थी। उसके भी अलग वचन हैं। इनका व्यवसाय नाईका था। साधना, साक्षात्कार, सिद्धि आदि पर कहे गये इनके अनुभवपूर्ण वचनोंको देख कर लगता है यह उच्चकोटिके साधक थे और, आध्यात्मिक क्षेत्र में जाति, कुल, व्यवसाय आदिकी कोई रुकावट नहीं थी। (८) 'कपिल सिद्ध मल्लिकार्जुन' अथवा 'कपिल सिद्ध मल्लिनाथय्या' इस मुद्रिकासे वचन कहनेवाले सिद्ध रामय्या सोन्नलिगेके रहनेवाले हैं। सोन्नलिगे को अाज सोल्लापुर कहते हैं । उनका साधना क्षेत्र सोल्लापुर भी रहा होगा | क्योंकि उनके एक वचनमें, "एन्न भक्ति गागि सोन्नलिगेयल्लि कपिल सिद्ध मल्लिनाथनागि बंदिरि'' ऐसा आया है । इनके कई वचनोंमें 'श्री गुरु चन्न वसव' और 'चन्न वसवकी कृपासे शिवयोगी बना' आदि आता है। इससे लगता है चन्न वसव इनके गुरु थे। कहा जाता है कल्याणमें आकर चन्न बसवसे दीक्षा लेनेसे पहले अपने गांव सोन्नलगेमें अल्लम प्रभुसे सिद्ध रामय्याकी भेंट हुई थी। सिद्धरामय्याकी यह मान्यता थी कि तालाब, कुंए, धर्मशालाएं, मंदिर आदि द्वारा पुण्य लाभ करना चाहिए । इसीसे स्वर्ग मिलेगा। किंतु अल्लम प्रभुने इनकी अांखें खोलीं। उस समय तक सिद्ध-रामय्याने शिवयोगकी दीक्षा नहीं ली था यह १. मेरी भक्ति के लिए सोनलिगेमें कपिलसिद्ध मल्लिनाथ वनकर आये . .
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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