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________________ पचन साहित्य परिचय कहा, "अहंकारका प्रतिरुमा कर विविध दामोदर पारलादीमिका मागं है । अहंकार हो गया' गानाका मूल ।। जय माटोमा नमी निजलयका भाषांगुर जमने लगेगा। प्रागेसी ना ना , पीयरी भायना न धरते हुए प्रच्छी तर एकरम, नमन ही मुदिती प्रागा है।" इसके बाद गुरुदक्षिणा मांगवान ममीन आवान पनि मा, "दामोद लिए अन्य जंगमकार श्री मया गाना अनुमोनी पारने घर पर बुलायो !" ___ "यह हम जैसे गरीबों का जोर नहीं !" पलिने निशिबाट माद तब व माती पात्म-विधान से मारनी, "अविना काका गा. वाले सदनसले लिए मांगी मां नमी दाणे पार की मानी।" पलीकी बातों से प्रभावित होकर पगि अनुभव मंटो मापोंगी सपने घर दालोटा के लिए युनाया। पहला प्रग, बगनर सादियानमारको घर गये । 'दामोहमहा । मगर दानिमा मागतमागत मकर रागवेश्वरने कहा, "पर देगी गरीबी दादी मापन । पकिना है, किंतु मन-धन संपन्न । ni गतिमा एम जी का जीवन ईश्वराग होता है।" इसके प्रनंतर नाविने उनका निकर होगी बाला रही। मोनिमेष मारकी पत्नीने पतिको भान ही विमा था, पर साम्गाने ज्ञान माय भी दिया । सियोंको जीवन में पायानेगा अपना दिमा माग तो वा शिम प्रकार कार्य कर दिया सकती है, मोके लिए हिम प्रारमेरगाना सोस बन जाती हैं, इसका यह गुन्दर उदाहरण है। सम्मान बनन सरपमा सुनम, नूमात्मक और अर्थ-पूर्ण है । उन्होंने यहां लोगोलियों का समान पाया है। (५) सोलहवीं सदी में रापाकवि कालिगा है। उसका नाम 'सोमनाथ पुरागा' है । जामें पायल्प नामो र चमारा जीवन-वृत्तांत दिया है । प्रादस्य सौराष्ट्र लोमेश्वर' यस मुनिका प्रपणे पनन महा थे। प्रादव्य नौराष्ट्रगे रहनेवाले हैं । बारा उनका गांव है। सौराष्ट्रका सोगनाथ (?) सोमेश्वरलिग उनका इप्ट लिंग है। उनकी माता का नाम पुप्यरती और पिताका नाम घोरदत्त था। यह व्यापार-उद्योग के लिए नाटिका में पाये। वहां पुलिगेरे में रहने लगे। उस समयना पुलिगेरे भाजके नगेवर के पास है। १. तन-मन-मन भगवदर्पण कर उसका प्रसाद रूप उपभोग बारना ।
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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