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वचनकारोंका सामूहिक व्यक्तित्व और जीवन-परिचय
वचन - साहित्यका विहंगावलोकन करनेके बाद उसके रचयितात्रों के बारेमें कुछ जिज्ञासा होना स्वाभाविक है। किंतु वचन साहित्य किसी एक साहित्यिककी कृति नहीं है । वह वचनकारोंकी सामूहिक साधनाका परिणाम है । इसलिए किसी भी वचनकारके व्यक्तिगत जीवनका विचार करने के पहले उनके सामूहिक व्यक्तित्वका विचार करना आवश्यक हो जाता है ।
वचनकारोंकी दृष्टिसे 'वचन अमृतवाणी है।' वचनकारोंने अपने अनुयायियों सें स्पष्ट कहा है कि शुद्ध आचार-विचार जानने के लिए अथवा अपनी भूलको जानकर उसको सुधारनेके लिए वचनों को देखना चाहिए। शरणोंके वचन मोक्षके आगर हैं | ज्ञानके सागर हैं । दिव्यत्व के भंडार हैं । माया-मोहके लिए मोत हैं। उनकी दृष्टिसेव ही वचनकार हैं जिनके वचन मोक्षके लिए साधन-रूप हैं। सुदीर्घ साधना और गुरू कृपासे जिन शरणों के हृदयमें ऐसे वचन उदित हुए हैं, जिनके वचनोंमें साक्षात्कारका अनुभव मूर्तिमान हुआ है वही वचनकार हैं । इन वचनकारोंको कभी-कभी शिवयोगी, ज्ञानी, भक्त, शरण ग्रादि कहा गया है । हम उनको सन्त कहते हैं । 'सर्वे सुखिनः संतु सर्वे संतु निरामयाः' के महान साधक । इन सब नामोंसे शरण ही उनका उचित गौर ग्रन्वर्थक नाम लगता हैं, क्योंकि उन्होंने अपना सर्वस्व भगवान के चरणों में समर्पित किया था । वे भगवानकी शरण गये थे, और उनको यही नाम सबसे अधिक अच्छा लगता था । वे अपने आपको 'शिव शरणरू' कहलाते थे ।
ये शिवशरण साहित्यकार नहीं थे, किंतु अपना सर्वस्व भगवानके चरण में समर्पण किये हुए साधक थे, सिद्ध थे । उन्होंने तमिलके 'मालवार और 'रिवर'' की तरह कर्नाटकके धार्मिक जीवनमें क्रांति की है । इसलिए वे क्रांतिदूत थे । कन्नड़-भाषा-भाषी सामान्य जनतामें ग्राध्यात्मिक ज्ञानको पहुंचाकर उसे प्राध्यात्मिक पथ प्रदर्शित करनेवाले पथ-प्रदर्शक थे ।
उन्होंने जाति-पांतिके भेदको मिटाया । मोक्ष-शास्त्रको सर्वसुलभ वनाया । अतिप्राचीन कालमें श्री महावीर और भगवान बुद्धने धर्मतत्वोंको गूढ़ताके आवरण से मुक्त किया । भारत के साधारणसे साधारण मनुष्य भी समझ सके, ऐसी लोक भाषामें उन तत्वोंका प्रचार किया । इससे समाज में बड़ी उथल-पुथल मची | सामान्य जनता भी धर्मोन्मुख वनी । मोक्ष-साधना सामूहिक वनी । प्रकट चिंतन और सामूहिक प्रयोगसे प्राध्यात्मिक साधनाकी गूढ़ता जाती रही और
१. नायनमार ।
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