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वचन-साहित्यका साहित्यिक का ध्वनि-साम्य, पद-साम्य, पुनरुक्ति प्रास आदिसे प्रत्येक चरण हो अर्नवाले ‘एन्न', अंतमें आनेवाला 'नीवय्या' शब्द, बीचमें आनेवाले अंतरंगविहिरंग अरिवुमरवु, भक्ति-युक्ति आदि शब्दोंसे वास्तविक पद्य वन गये हैं। ये वचन कोई अपवादात्मक नहीं हैं । ऐसे हजारों उदाहरण मिलते हैं। __ ऊपर लिखे हुए वचन कविताके ढंगसे लिखे गये हैं, किंतु वह पद्य नहीं हैं। वचनकारोंने लोकभाषामेंसे जिन सीदे-सादे सरल शब्दोंका चयन किया है उनकी समानता, उनका लालित्य, लोच, लय, प्रास, ध्वनि आदिसे अत्यंत आश्चर्यजनक रूपसे कौतुकास्पद अर्थ-सामंजस्य साधा है । उनका शब्दचयन और रचना-चातुर्य अक्षरशः अनुपम है । गद्यमें कोई तालवद्धताकी अपेक्षा नहीं करता । गद्यमें कोई शब्दोंके सम-प्रमाणकी अपेक्षा नहीं करता। किंतु वचन-साहित्य में वह सहज साध्य हुआ है । वचन-गद्यमें स्वाभाविक तालबद्धता आयी है । इसीलिए गद्यको पद्यकी भांति, अथवा कविताकी भांति गानेकी परिपाटी पड़ी होगी। गाये गये वचनोंको सुनकर स्वभावतः सुननेवालोंको यह भ्रम हो सकता है कि वचन कविता है ! परन्तु केवल इतनेसे ही वचनोंको कविताकी कसौटी पर कसकर देखना उचित नहीं कहा जा सकता। उनके शब्दोंकी मात्राएं गिनकर उनको गणोंमें कसनेका अधिकार नहीं मिल सकता। वचन गद्य हैं, पद्य नहीं, यह जानकर ही उसकी ओर देखना चाहिए । कन्नड़के साहित्य-मर्मज्ञोंने उनको गद्य माना है। किंतु अन्य गद्य-शैलियों से भिन्न होनेके कारण वचन-गद्य कहा है। __ वचनोंमें अनेक प्रकारके दृष्टांत पाये हैं। किसी भी विषयको सुननेवाले अथवा पढ़नेवालेके मन पर प्रतिबिंवित करनेके लिए सुन्दर, सुलभ दृष्टांत पावश्यक हैं । जटिल विषयको सरल, सुलभ बनानेके लिए दृष्टांत सर्वोत्तम साधन है । वचनकारोंने इस साधनका अत्यंत प्रभावकारी ढंगसे उपयोग किया है और वह भी प्रचुर मात्रामें । वचनकारोंने अज्ञात सृष्टिमें अनुभूत सत्यको, अमूर्त कल्पनाओंको अनेक प्रकारके सुन्दर दृष्टांतों द्वारा अत्यंत कुशलताके साथ व्यक्त किया है । वचनकारोंके दृष्टांत अपूर्व ही कहे जाएंगे। इनके कुछ उदाहरण देखिए :(१) काद कंचिनमेल नीर विट्टते।
गरम तवेपर पानी छोड़नेकी भाँति । (२) बधिरन काव्य ।
वहरेका कान्ध (वहरेको सुनाया गया काव्य) (३) हुलिय वायल्लि सिक्क हुल्लयंते ।
शेरके मुंहमें फंसे हिरणकी भांति ।