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________________ २४५ साधना मार्ग-कर्मयोग कठिनसे कठिन प्रसंग आनेपर भी अपना कर्त्तव्य कर्म नहीं छोड़ना चाहिए। परिस्थितिसे, कठिनाइयोंसे डरकर अपना कर्म नहीं छोड़ना चाहिए। किसी भी रूपमें उससे विमुख नहीं होना चाहिए। वचन-(३१७) कर्म रूपी जालमें पकड़ा गया हूँ। अपने सेवककी वात सुन ! विनय सुन! अब अन्तिम युद्ध में कूदता हूँ । शरीरको उसमें झोंक देता हूँ। तेरे बुलाने तक यदि पीछे हटा तो तेरा सेवक नहीं। शिव शरणोंकी सेना तो है : ही, शिव भक्तोंके मेलेमें रमता रहूँगा कूडलसंगमदेवा।। टिप्पणी:-यह वीर भक्तकी वीर वाणी है। मृत्युके आलिंगन करने पर भी अपना कर्तव्य करते रहनेकी प्रतिज्ञा है। (३१८) भागनेवाला भगोड़ा सेवक नहीं होता, माँगनेवाला भिक्षुक भक्त नहीं होता। सेवकको भागना नहीं चाहिए, भक्तको माँगना नहीं चाहिए। न भागूंगा और न मांगूंगा कूडलसंगमदेवा। (३१६) डरनेसे नहीं रुकता, सहमनेसे नहीं रुकता वन पंजरमें जा बैठनेपर भी ललाट लिखित नहीं रुकता । अकुलानेसे, रोने धोनेसे, क्या होगा? धीरजखोकर, मन मारकर बैठे रहनेसे होनेवाला रुकेगा नहीं और न मिलनेवाला मिलेगा नहीं कूडलसंगमदेवा।। टिप्पणी:-जो होनेवाला है वह होकर रहेगा। जब यह सुनिश्चित है तब भला रो-धोकर, धीरज खोकर जीनेमें क्या धरा है ? सतत धैर्यसे आनन्दसे प्राप्त परिस्थितिका स्वागत क्यों न करें ? वचनकारोंने सच्चे कर्मयोगीकी भांति निष्काम भावसे, शान्त मनसे कर्म करते रहनेकी शिक्षा. दी है। (३२०) शिव अपने भक्तोंको भी अपने जैसा जोगी बनाकर छोड़ेगा। सोनेकी भांति कसौटीपर कसकर देखेगा, अपने भक्तोंको । चन्दनके सदृश रगड़रगड़कर देखेगा अपने भक्तोंको, ईखसा निचोड़-निचोड़कर देखेगा, धैर्य से दृढ़ रहा तो प्रेमातिशपसे हाथसे उठाकर गोदमें विठा लेगा हमारा रामनाथा। टिप्पणीः-वचनकारोंका कहना है कि कर्तव्य पथमैं आनेवाली अनेक कठिनाइयां भगवानको श्रोरसे आनेवाले परीक्षा प्रसंग ही हैं। ऐसे समय अपने रास्तेसे अलग नहीं होना चाहिए। तब भगवान निश्चित रूपसे प्रसन्न होगा । ऐसे अनेक वचन हैं। ऊपरका वचन उनमेंसे एक है। आगे जीविकोपार्जन करने के लिए किये जानेवाले कर्मके विषयमें कहे हुए वचन देखें। (३२१) कायक निरत साधकको गुरु दर्शन होनेपर भी उन्हें भूलना चाहिए, लिंग पूजा भी भूलनी चाहिए, आगे बंठे जंगमकी ओर भी दृष्टि उठाकर नहीं देखना चाहिए, क्योंकि कायक ही कैलास है। अमलेश्वर लिंगका दर्शन कायकमें ही होता है।
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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