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वचन-साहित्य-परिचय : . .
वाला यह शरीर ही तुम्हारा बन गया है । मेरा सर्वस्व पहले ही तुम्हें अर्पित हो. जानेसे मैं तुम्हें अब कुछ भी अर्पण नहीं कर सकता और कोई तुम्हें अपना समर्पण करेगा। "भक्त देहि देव" ऐसा श्रुति वचन जान करके तुम्हारा स्पर्श कर . तुमसे अभिन्न हो गया हूँ कडलसंगमदेवा।
(३११) शरीर ही तेरा रूप बननेके अनन्तर किसे देखू ?... मन एकरूप. होने के पश्चात किसका स्मरण करु ? प्राण तेरे रूप बन जानेके उपरान्त किसकी आराधना करु ? जब ज्ञान ही तुममें स्थिर हो गया, तो और किसको जानूं ? चन्नमल्लिकार्जुना तुमसे तुम ही बनकर तुम्हें ही जानती हूँ। ...