________________
२०८
..
वचन-साहित्य परिचय जिज्ञासासे उसको जाननेका प्रयास करनेवाले लोग बहुत कम होते हैं। प्रात्यंतिक सत्यके अनुभवके लिये, क्षणिक सुखकी अभिलाषा अथवा विषय सुखसे इंद्रियोंको होने वाला सुख अर्थात् केवल भौतिक सत्यका अनुभव विरोधी भाव है। इंद्रियानुभवको ही सत्य-नित्य मानकर हम जब तक जीवन यापन करेंगे तब तक हमें आत्यंतिक सत्यका अनुभव नहीं होगा। अर्थात् भौतिक विषय सुखके पीछे पड़ना अथवा उसके लिये मन हारना अज्ञान है । यह अज्ञानका द्योतक है । अज्ञानका परिणाम है। वही माया है । वही मोह है, अविद्या है, ज्ञान शून्यता है ! ____ यह अज्ञान, अहंकार, काम, क्रोध, देहात्मबुद्धि, इंद्रिय-सुख-लोलुपता,.
आसक्ति, आदि अनेक रूपसे मनुष्य के सामने आता है । यही. मनुष्यके एकमात्र प्राप्तव्य साक्षात्कार अथवा मुक्ति सुखके विरोधी भाव है। संसार तुच्छ है,. माया है, मिथ्या है, इस भावनासे संसारको त्याग कर गेरुवे कपड़े पहनकर,. संन्यासी वनकर भागनेसे कुछ नहीं बनता। किंतु संसारमें रह कर ही इन सबको जीतना होता है। इसीसे मनुष्य मुक्त होता है इसी में उसको शाश्वत सुखकी प्राप्ति होती है।
इस अज्ञानने मनुष्यको क्यों और कैसे घेर लिया ? यह अत्यंत महत्त्वका प्रश्न है। यहां इस प्रश्नका पूर्ण उत्तर न देकर उस ओर संकेत मात्र किया जाएगा।
जो अनंत है उसके सांत अथवा संकुचित होनेके पहले सृष्टिकी रचना होना असंभव है, अथवा जो अनंत है वही मर्यादित होकर नाम रूपादिको धारण करके सृष्टि कहलाता है, जैसे जल तत्त्वको नदी नाला आदि बननेके लिये मर्यादाके अंदर बद्ध होना पड़ता है। मनुष्य विश्वके मूलमें स्थित अनंत गुण, अनंतशक्ति, और अनंत ज्ञानका एक अंश रूप बनने के पहले जीव नहीं कहलाता। इसलिए वह संकुचित शक्ति, संकुचितज्ञान, अर्थात् मर्यादित शक्ति
और सीमित ज्ञानवाला होता है। अर्थात् वह अपने जीवन कमकी दृष्टिसे, अपनी देह तथा अपने जीवनसे संबंधित विश्व विषयको ही जानता है। उसका ज्ञान सीमित होता है । यह सीमित अथवा संकुचित ज्ञान ही अज्ञान है । क्योंकि वह विश्वके संपूर्ण तत्त्वका ज्ञान नहीं जानता। किंतु मनुष्य और विश्वकी मूल भूत शक्तिका तत्त्वतः सबंध है। मूलतः और तत्त्वतः वह एक ही है, अतएव यह सब जानकर मूलशक्ति अथवा तत्वके साथ समरस होनेकी क्षमता मनुष्य में है। यदि वह ऐसा प्रयत्न करेगा तो ज्ञानी, अर्थात् पूर्णज्ञानी बनकर मूल तत्वको भांति मुक्त भी होगा। तब तक वह बद्ध है, केवल अंशाविर्भावकी भांति सांत हैं, संकुचित हैं, मर्यादित है, इसलिये दुःखी है