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. वचन-साहित्यका सार-सर्वस्व
६७ कुंडलिनी-शक्तिके द्वारा ब्रह्मरंध्र अथवा सहस्र-कमल-दल में स्थित ब्रह्मको पायेगा। उससे उसको एकात्मकताका अनुभव होगा। वचनकारोंके शब्दोंमें कहना हो तो शून्य-पद प्राप्त होगा अथवा समरसैक्य प्राप्त होगा। एक बार इस प्रकारका अनुभव प्राप्त करनेके उपरांत साधक जैसे गुड़में चींटी चिपट जाती है इस स्थितिमें स्थिर रहने का प्रयास करेगा । यही सिद्धि है। यही शाश्वत सुख है। यही परमानंद है । यही पूर्णानंद अथवा ब्रह्मानंद है। यह प्राप्त करने के वाद साधक सिद्ध कहलाता है । मुक्त कहलाता है ।
प्राणशक्तिके द्वारा सिद्धि प्राप्त करनेवाले साधकको जैसे प्रासन, प्राणायाम आदिके द्वारा शरीर शुद्ध करना पड़ता है वैसे ही क्रियाशक्तिके द्वारा सिद्धि प्राप्त करनेवाले साधकको प्रथम सर्वसमर्पण द्वारा संकल्प-शुद्धि करनी होगी। कर्मयोगी सर्वप्रथम संकल्ल-शुद्धि करता है। विना संकल्प शुद्धिके शुद्ध कर्म असंभव है । संकल्पशुद्धिसे साधक निरहंकार होता है। निरहंकार बननेसे 'मैं करता हूं' यह 'कर्तृत्व भाव' नष्ट होता है। तव वह निष्काम बन सकता है । अनासक्त बनता जाता है। ईश्वरका यंत्र बनकर सत्कार्य करता जाता है । अहंकार नष्ट होनेसे, अर्थात् 'मैं करता हूं' यह भाव नष्ट होनेसे वह कर्मका भार अनुभव नहीं करता । सदा सर्वदा कर्ममें रत रहने लगता है। इससे देह भान भूलता जाता है । जैसे-जैसे देह-भान भूलता जाता है, आत्म-भान बढ़ता जाता है। जैसे-जैसे आत्म-भान होता जाता है, साम्य बुद्धि, अथवा समता आती जाती है । इस साम्य-बुद्धिसे सर्वात्म-भावका विकास होता है । कर्मयोगी साधक आत्म भाव में डूबता जाता है । कर्म, कर्मी और कर्मफलकी एकतासे वह कर्मसमाधिमें लीन हो जाता है। तव उसका कर्म, ब्रह्म-कर्म हो जाता है। साधक विशुद्ध कर्मानंदमें डूब जाता है। कर्म उसका स्वभाव वन जाता है। तब कर्म करके भी वह अकर्मी बनता है । अनंत कर्म करने पर भी उसको 'मैंने किया है, इसका भान ही नहीं रहता । वह निराभार हो कर मुक्त हो जाता है। यह समन्वय-योगांतर्गत कर्मयोगकी प्रक्रिया है।
क्रिया-शक्ति द्वारा अपना ध्येय प्राप्त करने वाले कर्मयोगीको जैसे सर्व प्रथम संकल्प-शद्धि करनी पड़ती है वैसे चिंतन-शक्ति द्वारा ध्यान-योगकी साधना करने वाले साधकको चित्त-शुद्धि करनी पड़ती है। वह सर्वप्रथम चित्त-शुद्धिका प्रयास करता है। अपने चित्तमें उठने वाली अनंत वृत्तियों को रोकने का प्रयास करता है । अपनी आशा-आकांक्षाओंकी छानबीन करता है। वासना-विकारोंके उलझे हुए धागोंको सुलझाता रहता है । चित्ताकाशमें उठने वाली वृत्तियोंकी उलझनोंको सुलझाता रहता है ! पंचेंद्रिय और पंचमहाभूतात्मक विश्वकी विविधताके अनुभवोंके जो धागे उलझे हुए होते हैं