________________
मां
सायकाल आठ बजे माता ने प्राण त्याग दिये। श्रीभगवान् तत्काल उठ खडे हुए । वह अत्यन्त प्रसन्न मुद्रा मे थे। उन्होने कहा, "अब हम खा सकते हैं, सब मेरे साथ चलो, अब कोई दोप नहीं है।" ___इसमे गम्भीर अथ निहित था । हिन्दुओ के सिद्धान्तानुसार मृत व्यक्ति अपवित्र होता है, उसकी शुद्धि के लिए सस्कार करना पडता है परन्तु यह मृत्यु नही, महासमाधि थी। इसलिए शुद्धिकारक सम्कारो की आवश्यक्ता नहीं थी। कुछ दिन बाद श्रीभगवान् ने इमकी पुष्टि की जब कोई माता के देहावसान की चर्चा करता तव वह सक्षेप में उसकी गलती सुधारते हुए कहते, "उनका देहावसान नहीं हुआ, उन्होंने महासमाधि ली है।"
पीछे इस प्रक्रिया का वणन करते हुए उन्होंने कहा, "आन्तरिक प्रवृत्तियां तथा भावी सम्भावनाओ की ओर ले जाने वाली गत अनुभवो की स्मृति अत्यन्त सक्रिय हो गयी। उसकी सूक्ष्म चेतना के सम्मुख दृश्य के वाद दृश्य आने लगे, वाद्य इन्द्रियो की चेतनता पहले ही लुप्त हो चुकी थी। आत्मा अनुभवो की शृखला में से गुजर रही थी, इस प्रकार पुनजन्म की आवश्यकता का निराकरण कर रही थी और आत्मा के साथ एकरूपता को सम्भव बना रही थी। अन्त मे अन्तिम लक्ष्य पर पहुंचने से पूर्व, आत्मा सूक्ष्म कोशो से मुक्त हो गयी, मुक्ति के परम शान्ति धाम में पहुँच गयी जहाँ से पुन व्यक्ति अज्ञान की ओर नही लौटता । __ श्रीभगवान् ने भी मां को वडा आध्यात्मिक सहारा दिया, परन्तु यह अलगम्भाल का सन्त स्वभाव, उसका पूर्व जन्म का अभिमान और आसक्ति का परित्याग ही था, जिसके कारण वह इससे लाभ उठा सकी। उन्होने बाद मे कहा, "मां के सम्बन्ध में मुझे सफलता मिली, एक पूर्व अवसर पर जव पलानीस्वामी का अन्त निकट 'था, मैंने उसके लिए भी यही किया, परन्तु मुझे सफलता नहीं मिली। उसने अपनी आँखे खोल ली और उसकी इहलीला समाप्त हो गयी ।" उन्होने आगे कहा, पलानीस्वामी के सम्बन्ध मे भी पूर्ण असफलता नहीं हुई, यद्यपि अह का आत्मा मे लय नही हुआ तथापि इसके प्रयाण का ढग इस प्रकार का था कि उससे अच्छे पुनजन्म का सकेत मिलता था।
प्राय जब भक्तो को किसी प्रियजन के वियोग का कष्ट उठाना पड़ता पा, श्रीभगवान् उन्हें स्मरण कराया करते कि यह केवल शरीर हो है जो मरणधर्मा है और 'मैं, शरीर हूँ इस प्रकार के चेतन्य से ही हमे मृत्यु दुखदायिनी प्रतीत होती है । अव अपनी माता के वियोग के समय उन्होने किसी प्रकार के दुःख का प्रदशन नहीं किया। रात भर श्रीभगवान् और भक्तजन भक्तगीतो का गान करते हुए बैठे रह । अपनी माता की भौतिक मृत्यु के प्रति श्रीभगवान् की यह उदासीनता, मां के पूर्व रोग के अवसर पर श्रीभगवान् द्वारा की गयी प्राथना की वास्तविक व्याख्या है।