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अ- प्रतिरोध
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उदासीन दशक की भाँति इसे देख रहा है । बुराई या उत्पीडन के अवसरो पर श्रीभगवान् की इस प्रकार की धारणा होती थी ।
गुरूमूत्तम के बाहर इमली के वृक्ष थे । जब श्रीभगवान् वहाँ रहते थे, वे कभी- कभी किसी एक इमली के वृक्ष के नीचे जाकर बैठा करते थे । एक दिन, जब कोई और व्यक्ति आस-पास नही था, चोरो का एक दल इमली की पकी फलियां चुराने के लिए वहाँ आया । वृक्ष के नीचे तरुण स्वामी को मौन भाव से बैठे हुए देखकर, उनमे से एक कहने लगा, "कही से थोडा-सा अम्ल रस लाओ और इसकी आँखो मे डाल दो, देखें फिर वह बोलता है कि नही ।" इस रस से, भयकर दद के अलावा, आदमी अधा भी हो सकता है, परन्तु स्वामी अचल वैठे रहे, मानो उन्हें अपनी आँखो की और इमली की फली की कोई चिन्ता ही न हो । दल के एक अन्य व्यक्ति ने उत्तर दिया, "इसकी चिन्ता मत करो । यह हमे क्या नुक्सान पहुँचाएगा । आओ, हम अपना काम करे ।"
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पहाडी पर शुरू के वर्षों मे कभी-कभी हस्तक्षेप या विरोध होता था । साधुओ की विचित्र दुनिया में, कुछ साधु-ठग भी होते हैं और कुछ ने अपने आवेशो का नियन्त्रित किये विना, प्रयत्न से कुछ सिद्धियाँ प्राप्त कर ली होती हैं। भक्तो द्वारा देवी दीप्ति सम्पन्न तरुण स्वामी की प्रशस्ति के कारण कई साधुओ मे विक्षोभ की भावना पैदा होना स्वाभाविक था हालांकि अधिकाश साधु श्रीभगवान् के आगे नतमस्तक होते और उनकी कृपा की आकाक्षा करते थे
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पहाडी पर एक कन्दरा मे एक वृद्ध साधु रहते थे । वह श्रीभगवान् का जव तक यह गुरुमृतम् मे रहे वडा सम्मान करते रहे । विरूपाक्ष आने के बाद श्रीभगवान् कभी-कभी उनके दानो के लिए जाते और उनके पास मौन भाव से बैठ जाते । यद्यपि वह तपस्वी जीवन व्यतीत कर रहे थे और उनके अनुयायी भी थे तथापि वह अभी मानवीय आवेशो पर विजय नही पा सके थे । इसीलिए वह यह सहन नही कर सकते थे कि तरुण स्वामी के अनुयायियो की सख्या तो वढती जाय और उनके अपने अनुयायियो की सख्या घटती जाय । वह श्रीभगवान् को मारने या भयभीत करके पहाडी से भगाने का निश्चय करके सूर्यास्त के बाद विरूपाक्ष के ऊपर पहाडी पर छिपकर बैठ गये और शिलाएँ तथा पत्थर नीचे लुढकाने लगे । श्रीभगवान् अविचल भाव से बैठे रहे, हालांकि एक पत्थर उनके बिलकुल निकट आ गया । सतत जागरूक भगवान् इस घटना चक्र से पूणत परिचित थे। एक अवसर पर तो वह जल्दी-जल्दी चुपके मे पहाड़ी पर चढ गये और उन्होंने उस वृद्ध व्यक्ति को रंगे हाथो पकड लिया । फिर भी उस वृद्ध व्यक्ति ने इसे मजाक मे उड़ाने की कोशिश की ।
जब उस वृद्ध साधु को अपने प्रयत्न में सफलता न मिली तब उसने बालानन्द नामक एक घूत की सहायता ली। वह व्यक्ति सुन्दर और पढ़ा-लिखा