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वापसी का प्रश्न
कहा था (यह दसवें अध्याय मे उद्धृत श्रीभगवान द्वारा दिये गये उत्तर में है) "चूंकि जीवो को उनके कर्मों का फल भगवान् के नियमो के अनुसार मिलता है, इसलिए उत्तरदायित्व उनका है, न कि भगवान् का।" उन्होने निरन्तर प्रयत्न की आवश्यकता पर बल दिया। 'महर्षीज गॉस्पल' नामक पुस्तक मे एक भक्त की शिकायत इस प्रकार सग्रहीत है "अक्तूबर मे आश्रम छोडने के उपरान्त दस दिन तक मुझे उसी प्रकार की शान्ति का अनुभव होता रहा जिस प्रकार की शान्ति में श्रीभगवान् के सानिध्य मे अनुभव किया करता था। हर समय जबकि मैं काय मे भी व्यस्त होता था, मुझ मे धान्ति की अन्त धारा प्रवहमान होती प्रतीत होती थी, यह लगभग दोहरी चेतना के सदृश था जो कि एक व्यक्ति किसी नीरस भाषण के समय, अर्द्ध-स्वप्नावस्था मे अनुभव करता है । तव यह विलकुल लुप्त हो गयी और इसके स्थान पर फिर वही पुरानी मूखतापूर्ण वातें आ गयी।" और श्रीभगवान् ने उत्तर दिया, "अगर आप अपने मन को शक्तिशाली बना लें तो वह शान्ति स्थिर रहेगी। इसकी अवधि निरन्तर अभ्यास द्वारा अर्जित मन की शक्ति के अनुपात में होती है । 'स्पिरिचुअल इस्ट्रक्शन' पुस्तक मे एक भक्त ने भाग्य और प्रयत्न के बीच इस प्रत्यक्ष विरोध की और स्पष्टत निर्देश किया था, अगर, जैसा कि कहा जाता है, प्रत्येक घटना माग्य के अनुसार घटित होती है, यहाँ तक कि वे बाधाएँ भी जो शक्ति को सफलतापूर्वक ध्यान करने से रोकती हैं, तो ये वाधाएँ अजेय समझी जानी चाहिए क्योकि अपरिवतनीय भाग्य ने उनका निर्माण किया है। उन पर कोई व्यक्ति किस प्रकार विजय पा सकता है ?" और इसका श्रीभगवान् ने उत्तर दिया, "ध्यान में बाधा डालने वाले 'भाग्य' का अस्तित्व केवल बमिन के लिए है न कि अन्तर्मन के लिए। इसलिए जो व्यक्ति अपने अन्दर आत्म-तत्व की तलाश करता है, वह अपने चिन्तन के मार्ग में आने वाली बाधा से भयभीत नहीं होता। इस प्रकार की बाधाओ का विचार ही सबसे वही बाधा है।"
सन्देश का उपसहारात्मक वाक्य इस प्रकार था, "इसलिए सर्वोत्तम मार्ग मोन रहना है"-जो श्रीभगवान् की माता पर विशेष रूप से लागू होता है क्योकि वह उस चीज की मांग कर रही थी, जो स्वीकार नहीं की जा सकती थी। सामान्य लोगो पर यह इस अथ मे लागू होता है कि "कांटो के विरुद्ध पदाधात करने का कोई लाभ नहो' अर्थात् अपरिवर्तनीय माग्य का विरोध फरना निष्फल है, परन्तु इमका यह अभिप्राय नहीं कि व्यक्ति प्रयास करना ही छोड़ दे । जो व्यक्ति यह कहता है, “प्रत्येक वस्तु पूर्व निर्धारित है, इसलिए में कोई प्रयास नहीं करूंगा," वह झूठी धारणा का शिकार है, "और मैं जानता हूँ कि पूर्व-निर्धारित क्या है"~सम्भव है उसके भाग्य मे विधाता ने