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वापसी का प्रश्न
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जब पलानीस्वामी वहाँ न होते तभी भिक्षाटन के लिए उस स्थान को छोडकर जाते । प्राय ऐसा होता कि मन्दिर का पुजारी पूजा करने के वाद ताला लगाकर चला जाता, वह यह भी देखने का कष्ट नही करता कि स्वामी अन्दर हैं या नही ।
यही पर अलगम्माल ने अपने पुत्र के दर्शन किये । नेल्लियाप्पियर से समाचार मिलने के बाद उसने क्रिसमस की छुट्टियो की प्रतीक्षा की, क्योकि उन्हीं दिनो उसका सबसे बडा लडका उसके साथ चल सकता था । इसके वाद उसने उसके साथ तिरुवन्नामलाई के लिए प्रस्थान किया । उसने वेंकटरमण के कृश शरीर और जटाओ के बावजूद उसे तत्काल पहचान लिया । पुत्र स्नेह से उसका हृदय करुणाद्र हो उठा और उसने उससे घर वापस लौट चलने की प्रार्थना की, परन्तु वह अविचलित बैठा रहा, न उसने कोई जवाब दिया और न यह प्रदर्शित किया कि उसने कुछ सुना है । प्रतिदिन उसकी माँ उसके खाने के लिए स्वादिष्ट पदार्थ ले आती, उससे अनुनय-विनय करती, उसकी भर्त्सना भी करती, परन्तु उस पर कोई असर न होता । एक दिन, अपने प्रति उसके नितान्त उपेक्षा भाव को देखकर उसकी आँखो मे आँसू छलछला आये । उसने तब भी कोई जवाब न दिया । कही उसकी सहानुभूति न फूट पडे और उसकी माँ को झूठी आभा न घे, इसलिए वह उठ खडा हुआ और दूर चला गया। अगले दिन उसने वहाँ एकत्रित भक्तजनो की सहानुभूति प्राप्त की, अपनी दु खगाथा उनसे कह सुनायी और हस्तक्षेप की प्रार्थना की। भक्तो मे से एक पचियप्पा पिल्लई नामक व्यक्ति ने स्वामी से कहा, “आपकी माँ रो रही है और अनुनयविनय कर रही है, आप उसे कम से कम 'हाँ' या 'न' मे कोई जवाब तो दें। आपको अपना मौनव्रत तोडने की कोई आवश्यकता नही, ये रहे कागज और पेंसिल, जो कुछ आपको लिखना हो, लिख दें ।"
स्वामी ने कागज पेंसिल ले लिया और सर्वथा अवैयक्तिक भाषा मे लिखा
" विधाता जीवो के प्रारब्ध कर्मानुसार उनके भाग्यो का नियन्त्रण करता है। आप कितनी ही कोशिश कर लें, जो कुछ भाग्य में नही होना लिखा, वह कभी नहीं होगा । जो कुछ भाग्य में होना लिखा है, वह होकर रहेगा, भले ही आप इसे रोकने की कितनी ही कोशिश क्यो न कर लें । यह निश्चित है, इसलिए सर्वोत्तम माग शान्त रहने का है ।"
सारत जो कुछ स्वामीजी ने कहा, वह वही है जो ईसामसीह ने अपनी माँ से कहा था, "मुझे तुमसे क्या लेना-देना है ? क्या तुम नही जानती कि मुझे अपने महान् पिता का काय सम्पन्न करना है ?" श्रीभगवान् की रही कि एक तो प्रथम वह मौन रहे जबकि उनका उत्तर बिलकुल निषेधात्मक यह विशेषता था और जब उनके मौन को स्वीकृति प्रदान नही की गयी, उन पर और दवाव