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लिखित रचनाएँ
१७५ श्रीभगवान् ने अपनी विलक्षण स्पष्ट शैली में यह बताना जारी रखा कि किस प्रकार उन्होने ऐट स्टेजाज की रचना की।
___ "अगले दिन मैंने पहाडी के चारो ओर जाना शुरू किया। पलानी म्वामी मेरे पीछे-पीछे चल रहे थे। जब हम कुछ दूर निकल गये, मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि ऐजास्वामी उन्हे वापस बुला रहे हैं और एक पेंसिल तथा कागज देते हुए कह रहे हैं, 'कई दिन से स्वामीजी प्रतिदिन कविता कर रहे हैं । वह आज भी कविता रचेगे, इसलिए आप यह कागज और पेंसिल अपने पास रख लें।'
"मुझे इस बात का केवल तव पता चला जब मैंने यह देखा कि पलानी स्वामी थोडी देर के लिए मेरे साथ नहीं थे, बल्कि वह बाद मे मेरे साथ आकर मिले । उम दिन विरूपाक्ष कन्दरा मे जाने से पूर्व मैंने आठ पदो में से छ की रचना की। या तो उस सायकाल या अगले दिन नारायण रेड्डी आये। उस समय वह वैल्लौर मे सिंगर एण्ड कम्पनी के एजेण्ट थे और अक्सर मेरे पास आया करते थे । ऐजास्वामी और पलानी ने उन्हें कविताओ के सम्बन्ध मे बताया और उन्होने कहा, "आप तत्काल ही वे कविताएँ मुझे दे दें, मैं उन्हें छपाऊंगा।' उन्होने पहले ही कई पुस्तकें प्रकाशित की थी। जब उन्होंने कविताएं लेने का आग्रह किया तो मैंने उन्हें आज्ञा दे दी और कहा कि वह पहली ११ कविताएँ एक कविता के रूप मे प्रकाशित करें और शेप जो कि भिन्न छन्द मे थी दूसरी कविता के रूप में । गणना-पूर्ति के लिए मैंने तत्काल हो दो और पदो की रचना की और वे सारे उन्नीस पद प्रकाशित करने के लिए अपने साथ ले गये।"
अनेक कवियो ने श्रीभगवान की प्रशस्ति मे विभिन्न भाषाओ मे गीतो की रचना की। इनमे से गणपति शास्त्री और मुरुगानार बहुत प्रसिद्ध थे जिन्होंने क्रमश मस्कृत और तमिल मे रचनाएं की। यद्यपि उपरि उद्धृत वार्तालाप मे श्रीभगवान् कविता-लेखन को शक्ति का अपव्यय समझते थे और कहा करते ये कि इस शक्ति को आन्तरिक साधना की ओर प्रेरित किया जा सकता है तथापि वह वहे ध्यान से कविताएं सुनते थे और जव उनके सम्मुख कविता-पाठ किया जाता था, वह इसमे बडी दिलचस्पी प्रशित करते थे। उनके सम्बन्ध मे गद्य ग्रथ तथा लेख लिखे गये और वह प्राय उन्हें पढवाते तथा उनका अनुवाद करते ताकि सभी लोग उन्हें ममझ सकें। प्रत्येक व्यक्ति उनकी महभाव शू यता और वाल-सुलभ सरलता से अत्यधिक प्रभावित होता था।
दा गद्य-प्रय हैं, जिनके सम्बन्ध में ऐसा कहा जा सकता है कि उनकी रचना थीमगवान् ने की थी। विरूपाक्ष-निवास के प्रारम्भिक वर्षों में जब वह