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उपदेश
१५६ आत्म-प्रेम भगवद्प्रेम है और वही भक्ति है। इस प्रकार ज्ञान और भक्ति एक ही वस्तु हैं।" __श्रीभगवान् ने जिम ज्ञान और भक्ति का उपदेश दिया, वे विलकुल भिन्न माग प्रतीत हो सकते हैं, परन्तु वे एक-दूसरे के अधिक निकट हैं और दोनो एक-दूसरे का निषेध नहीं करते । वस्तुत वे उपर्युक्त समन्वित वर्णित मार्ग मे एकीकृत हो सकते हैं।
एक ओर, वाह्य गुरु के प्रति ममपण, उसकी कृपा के कारण आन्तरिक गुरु की ओर ले जाता है, विचार का उद्देश्य इमी की तलाश है, और दूसरी और विचार शान्ति तथा समर्पण की ओर ले जाता है। दोनो माग प्रत्यक्ष मानमिक शान्ति के लिए प्रयत्नशील है, भेद इतना है कि ज्ञान माग में व्यक्ति वाह्य गुरु के प्रति और भक्ति माग मे आन्तरिक गुरु के प्रति अधिक अभिमुख होता है । माधना की अप्रत्यक्ष विषियों मानसिक शक्ति को अधिक सुदृढ बनाती हैं ताकि व्यक्ति आत्मा के सम्मुख समपण कर सके और इसी की ओर थीभगवान् ने इस प्रकार निर्देश किया था, "चोर को पकड़ने के लिए जो कि वह स्वय है, चोर मानो सिपाही का रूप धारण कर लेता है।" नि सन्देह यह सत्य है कि समपण करने से पूर्व मन को शक्ति सम्पन्न और शुद्ध बनाना होगा, परन्तु विचार के प्रयोग के साथ, भगवान की कृपा से यह कार्य स्वत हो जाता है।
एक वार कृष्ण जीवरजनी नामक एक भक्त ने इसके सम्बन्ध मे श्रीभगवान से प्रपन किया "ग्रन्थो मे ऐसा लिखा है कि आत्म-साक्षात्कार की तैयारी के लिए व्यक्ति को अपने मे सभी अच्छे या देवी गुणो का विकास करना चाहिए।" ___श्रीभगवान् ने उत्तर दिमा "मभी अच्छे या दिव्य गुण ज्ञान में सम्मिलित हैं और सभी बुरे या याप्तुरी गुण अज्ञान में सम्मिलित है । ज्ञानोदय होने पर सभी अजान चला जाता है और सभी दैवी गुण स्वत आ जाते हैं। अगर कोई व्यक्ति ज्ञानी है तो वह असत्य नहीं बोल सकता और न कोई गलत काम कर सकता है। निस्सन्देह, कई ग्रन्थों में ऐसा लिखा है कि व्यक्ति को एक के वाद दूसरे गुण का विकाम करना चाहिए और इस प्रकार अन्तिम मोक्ष के लिए तैयारी करनी चाहिए परन्तु ज्ञान या विचार माग का अनुमरण करने वालो के लिए, दिव्य गुणा की प्राप्ति के निमित्त उनकी साधना ही पर्याप्त है। उन्हें और कुछ करने की आवश्यकता नहीं है।"
विरूपाक्ष अधि से ही महाँप इस प्रकार के उत्तर दिया करते थे जो कि घोरमण गीता के नाम में प्रकाशित हैं। वहल से भक्तो ने अन्य उपायो का भी माश्रय लिया, जैसे धार्मिक अनुष्ठान और प्राणायाम ( म फेवल विचार के प्रयोग से पूर्व तैयारी के रूप में इन उपाया का आश्रय लिया जाता है बल्कि