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________________ १४४ रमण महर्षि इसकी ओर देखने के लिए प्रयास करना होगा। प्रो० वेंकटरमैया ने अपनी डायरी मे लिखा है कि श्रीभगवान् ने एक अग्रेज दर्शनार्थी श्रीमती पिग्गोट से कहा था, "शिक्षाओ, भाषणो, चिन्तन आदि की अपेक्षा गुरु की कृपा आत्मसाक्षात्कार के लिए अधिक आवश्यक है, यह सब गौण कारण हैं । मुख्य और सारभूत कारण तो वह है ।" कुछ व्यक्तियो ने जो उनकी शिक्षाओ से अप्रत्यक्षत अवगत थे, यह सुझाव दिया कि श्रीभगवान् गुरु धारण करना आवश्यक नहीं समझते थे । इस प्रकार उन्होने गुरु द्वारा दीक्षा की आवश्यकता नही समझी। परन्तु श्रीभगवान् ने आश्रम के इस सुझाव का स्पष्टत विरोध किया। श्री एस० एस० कोहेन ने श्री अरविन्द आश्रम के प्रसिद्ध सगीतज्ञ श्री दिलीपकुमार राय के साथ इस विपय पर श्रीभगवान् के वार्तालाप का सग्रह किया है। दिलीप कुछ लोगो का कहना है कि महर्षि गुरु की आवश्यकता नही समझते । दूसरे इसके विपरीत कहते हैं । महर्षि की क्या सम्मति है ? भगवान् मैंने यह कभी नही कहा कि गुरु की कोई आवश्यकता नही । दिलीप श्री अरविन्द प्राय' यह कहते हैं कि आपका कोई गुरु नही है । भगवान् यह इस पर निर्भर करता है कि आप किसे गुरु कहते हैं । आवश्यक नहीं कि गुरु मानवीय रूप मे हो। दत्तात्रेय के चौवीस गुरु-तत्त्व आदि थे । इसका अभिप्राय यह है कि ससार में प्रत्येक रूप उसका गुरु था । गुरु नितान्त आवश्यक है। उपनिपदो का कथन है कि गुरु के अतिरिक्त अन्य कोई भी मनुष्य को मानसिक और इन्द्रिय ज्ञान के जगल से पार नही करा सकता । इसलिए गुरु का होना अत्यन्त आवश्यक है। दिलीप मेरा अभिप्राय मानव गुरु से है। महर्षि के कोई मानव-गुरु नही थे। भगवान् शायद किमी समय मेरे भी मानव-गुरु रहे हो । क्या मैंने अरुणाचल की प्रशस्ति मे गीत नही गाये ? गुरु क्या है ? गुरु भगवान् या आत्मा है । पहले व्यक्ति भगवान् से अपनी इच्छाओ की पूर्ति के लिए प्रार्थना करता है, फिर एक समय ऐसा आता है जब वह इच्छापूर्ति के लिए नहीं अपितु स्वय भगवान के लिए प्राथना करता है । इस प्रकार भगवान्, व्यक्ति की प्राथना के उत्तर मे गुरु के रूप मे उसका मार्गदर्शन करने के लिए, मानवीय या अमानवीय किसी न किसी रूप मे प्रकट होता है । ___एक वार किसी दर्शनार्थी ने कहा कि स्वय श्रीभगवान् का कोई गुरु नहीं था। इस पर उन्हाने कहा कि यह आवश्यक नहीं कि गुरु मानव रूप में ही हो, परन्तु ऐसा वहुत पम देखने में आता है। __ शायद श्री वी० वेंकटरमण के माष वार्तालाप के दोगन उन्होंने यह
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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