________________
चौदहवाँ अध्याय उपदेश
श्रीभगवान् का उपदेश अत्यन्त गुह्य था । यद्यपि सभी व्यक्ति समान रूप से उनके पास पहुँच सकते थे, प्रश्न सामान्यत पूछे जाते और सावजनिक रूप से उनके उत्तर दिये जाते तथापि प्रत्येक शिष्य के प्रति उनका मार्गदर्शन पूणत प्रत्यक्ष और उसके चरित्र के अनुरूप होता था। एक वार स्वामी योगानन्द जी ने, जिनके अमरीका मे अनेक अनुयायी थे, श्रीभगवान् से पूछा कि लोगो को उनके उद्धार के लिए कौन-सी आध्यात्मिक शिक्षा दी जानी चाहिए । उत्तर मे श्रीभगवान् ने कहा, "यह व्यक्ति के स्वभाव और आध्यात्मिक परिपक्वता पर निर्भर करता है । कोई सर्वसामान्य शिक्षा नही हो सकती।" पूर्व निर्देशित चार भक्तो-अचम्माल, मां, शिवप्रकाशम् पिल्लई और नटेश मुदालियर—की कथाओ के पुन स्मरण से हमे पता चल जायेगा कि श्रीभगवान् की शिक्षा चारो के लिए कितनी भिन्न थी। ___श्रीभगवान् अत्यन्त क्रियाशील थे—उन्होंने स्वय ऐसा कहा है, हालांकि उनके अनुग्रह का अनुभव करने वालो को किसी प्रमाण की आवश्यकता नही है परन्तु उनकी क्रियाशीलता इतनी गुप्त थी कि आकस्मिक दर्शक और वह व्यक्ति जो सूक्ष्म निरीक्षण नही कर सकते थे, ऐसा विश्वास करते ये कि श्रीभगवान् बिलकुल भी उपदेश नहीं देते थे या वह जिज्ञासुमो की आवश्यकताओ के प्रति उदासीन थे । ऐसे बहुत से व्यक्ति थे । जैसे कि वह ब्राह्मण जिसने नटेश मुदालियर को श्रीभगवान् के दर्शनो से रोका था। ____ इस प्रश्न की सर्वाधिक महत्ता इस तथ्य में निहित है कि (श्रीभगवान् जैसे विरले उदाहरणो को छोड कर) साक्षात्कार केवल गुरु की कृपा से ही सम्भव है । अन्य शिक्षको की तरह श्रीभगवान् का यह दृढ मत था । इमलिए साधक के लिए यह जानना ही पर्याप्त नही था कि उनकी शिक्षा श्रेष्ठ है और उनकी उपस्थिति म्फूर्तिदायिनी है, अपितु यह भी जानना आवश्यक था कि वह दीक्षा मऔर उपदेश देने वाले गुरु हैं ।
'गुर' शब्द का प्रयोग तीन अर्थो में दिया जाता है। इसका अर्थ ऐसे व्यक्ति से हो सकता है जिमने यद्यपि आध्यात्मिक सिद्धि प्राप्त नहीं की तथापि