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श्रीभगवान् का दैनिक जीवन
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इस प्रकार के समारोहो के अवसर पर श्रीभगवान् सबसे अलग भव्य मुद्रा में बैठ जाते । परन्तु प्रत्येक पुराने भक्त की ओर वह अत्यन्त आत्मीयता की दृष्टि से देखते जाते थे। एक बार का जिक्र है कि कार्तिकेय त्यौहार के अवसर पर सारे आश्रम मे बहुत भीड़ इकट्ठी हो गयी। भीड पर नियन्त्रण रखने के लिए श्रीभगवान् के चारो ओर जगला लगा दिया गया । परन्तु एक छोटा-सा लहका सीखचों को पार करके अन्दर चला आया और दौडकर श्रीभगवान् के पास पहुंच गया। वह उन्हें अपना नया खिलौना दिखाने लगा। इस पर उन्होने सेवक से हंसते हुए कहा, "देखो, तुम्हारा जगला कितना कारगर है ।" __ सितम्बर, १६४६ मे, तिरुवन्नामलाई मे श्रीभगवान् के आगमन का ५०वां त्यौहार वडे समारोह से मनाया गया था। यहां दूर-दूर से भक्तजन एकत्रित हुए थे । इस अवसर पर एक 'जयन्ती समारोह स्मृति चिह्न' प्रकाशित किया गया था जिसमे इस अवसर के लिए लिखित अनेक लेख और कविताएं थी। ____ अन्तिम वर्षों मे दशनाथियो की सख्या में वृद्धि के कारण, सामान्य दिनो मे भी पुराने सभा-भवन मे सब लोग नही समा सकते थे। इसलिए प्राय श्रीभगवान् वाहर ताड के पत्तो की छत के नीचे बैठते थे। सन् १९३६ मे माता की समाधि पर एक मन्दिर का निर्माण-काय प्रारम्भ हो गया था । यह मन्दिर सन् १९४६ मे बन कर तैयार हो गया। इसके साथ ही श्रीभगवान् और भक्तो के बैठने के लिए एक नये सभा भवन का निर्माण हुमा । वह शास्त्रीय सिद्धान्तों के अनुसार परम्परागत मन्दिर निर्मातामो द्वारा निर्मित एक भवन के दो भाग थे।
यह भवन पुराने समा-भवन और कार्यालय के दक्षिण में, उनके और सडक के वीच स्थित है। पुराने सभा-भवन के दक्षिण में, इसका पश्चिमी आधा भाग मदिर है, पूर्वी आधा भाग एक विशाल, वर्गाकार और हवादार भवन है जहाँ श्रीभगवान् भक्तों के साथ बैठते थे।
कुम्भाभिषेकम् या मन्दिर और सभा-भवन के उद्घाटन का समारोह अत्यन्त भव्य समारोह था। इसमें अनेक भक्तजन सम्मिलित हुए थे। इनके निर्माण के पीछे वर्षों का प्रयास और मायोजन था। श्रीभगवान नये सभा-भवन में प्रवेश नहीं करना चाहते थे । वह सादगी पसन्द करते थे और किसी प्रकार की धूमधाम अपने सम्बन्ध मे नही चाहते थे। वहत से भक्त भी नये सभाभवन में नहीं जाना चाहते थे। पुराना सभा भवन उनकी उपस्थिति से जीवन्त था और नया सभा-भवन उसकी तुलना मे निर्जीव मालूम देता था। जव उन्होंने इस नये सभा-भवन में प्रवेश किया तब मन्तिम वीमारी ने उनके शरीर पर बाक्रमण प्रारम्भ कर दिया था।