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________________ श्रीभगवान् का दैनिक जीवन का पखा रखा गया । उन्होने सेवक से पखा वन्द करने के लिए कहा और जव वह नहीं माना तो वह स्वय पखे के पास पहुंचे और उन्होंने प्लग वाहर खीच लिया । मक्तजन भी विक्षुब्ध थे, अफेले उन्हें ही पसा क्यो दिया जाये । वाद में छत के पखे लगाये गये और सबको समान रूप से लाभ पहुंचा। अव श्रीभगवान् के आगे डाक रखी जानी है । एक पत्र पर केवल इतना पत्ता लिखा है, 'भहपि, इण्डिया ।' एक भक्त ने अमरीका से आश्रम के बगीचे के लिए फूलो के वीज भेजे हैं । संसार के सभी भागो से भक्तो के पत्र आते रहते हैं। श्रीभगवान् हर पत्र को ध्यान से पढ़ते हैं, उसके पते और हाक मुहर पर टिप्पणी करते हैं। अगर किसी भक्त ने, जिसके मित्र समा-भवन मे उपस्थित हैं, कोई समाचार भेजा है, तो वह सवको समाचार पढ़ कर सुनाते हैं। वह स्वय पत्रो का उत्तर नहीं देते । इससे ज्ञानी के दृष्टिकोण का पता चलता है, उसके कोई सम्बन्ध नहीं होते, हस्ताक्षर करने के लिए कोई नाम भी नही होता । पत्रों के उत्तर आश्रम के कार्यालय मे लिखे जाते हैं और मध्याह्नोत्तर श्रीभगवान् के पास भेज दिये जाते हैं। अगर पत्रो में कोई अनुपयुक्त वात होती है तो वह उसकी ओर सकेत कर देते हैं। अगर उत्तर मे किसी विशेष या वैयक्तिक वात का उल्लेख आवश्यक होता है, तो वह इसकी और निर्देश कर देते हैं परन्तु उनकी समस्त शिक्षा इतनी स्पष्ट है कि भक्त इसे सरलतापूर्वक शब्दश दोहरा सकता है शब्दों के पीछे निहित अनुग्रह ही श्रीभगवान् दे सकते हैं। पत्रो के उत्तर के वाद, सभी लोग शान्तिपूर्वक बैठ जाते हैं, परन्तु इस मौन मे तनाव नहीं होता, यह शान्ति से ओत-प्रोत होता है। शायद कोई भक्त उनसे विदा लेने आया है, आश्रम परित्याग के विचार से अश्रुपूरितलोचना कोई महिला उनके समीप खडी है और भगवान के प्रकाशमान नेत्र शक्ति और प्रेम की वर्षा कर रहे हैं। उन नेत्रो का वणन हमारी शक्ति से परे है । उनकी ओर देखने से व्यक्ति को ऐसा अनुभव होता है, जैसे ससार का समस्त दुःख, व्यक्ति के सभी गत सघप, मन की सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं और व्यक्ति परम शान्ति का अनुभव करने लगता है। शब्दो को कोई आवश्यकता नहीं, उनका अनुग्रह व्यक्ति के हृदय को भान्दोलित कर देता है और इस प्रकार बाह्य गुरु व्यक्ति को अन्तर गुरु के ज्ञान की ओर प्रेरित करता है। ___ग्यारह बजे मध्याह्न भोजन के लिए आश्रम का शव बजता है। सब लोग उठ खड़े होते हैं और श्रीभगवान् सभा-भवन छोड़ कर चले जाते हैं। अगर कोई माधारण दिन होता है तो भक्तजन अपने घरों को चले जाते हैं । शायद यह बोई त्यौहार या किसी भक्त्त द्वारा भेंट या धन्यवाद के रूप में
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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