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श्रीरमणाश्रम
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उत्तर था, "उससे कह दें कि उसका भविष्य भी वही होगा जो उसका वतमान है।" इस उत्तर द्वारा न केवल उस व्यक्ति की भविष्य के प्रति दिलचस्पी की भत्सना की गयी थी बल्कि उसे यह स्मरण कराया गया था कि उसके वतमान अच्छे या बुरे काय उसके भविष्य का निर्माण कर रहे थे ।
एक आगन्तुक ने विभिन्न शिक्षको द्वारा निर्धारित मार्गों की चर्चा करते हुए और पाश्चात्य दाशनिको के उद्धरण देते हुए पाण्डित्य-प्रदशन किया । अन्त में उसने कहा, “एक एक बात कहता है, दूसरा दूसरी। कौन-सा माग ठीक है, मुझे किसका अनुसरण करना चाहिए।" ___श्रीभगवान मौन बैठे रहे परन्तु आगन्तुक ने अपना प्रश्न आग्रहपूवक जारी रखते हुए कहा, "कृपया मुझे बताएं कि मैं कौन से माग का अनुसरण करूं?"
फिर भी भगवान् ने कोई उत्तर न दिया और जब एक घण्टे बाद वह मभा-कक्ष से जाने के लिए उठ खडे हुए, वह उसकी ओर मुडे और उन्होने सक्षिप्त-सा उत्तर दिया, "जिस माग से आप आये थे, उससे चले जाएँ।"
आगन्तुक ने भक्तो से शिकायत की कि ऐसे उत्तर का क्या लाभ, परन्तु भक्तो ने इसके गम्भीर अथ की ओर सकेत करते हुए कहा, कि इसका अभिप्राय है एक मात्र माग अपने स्रोत की ओर वापस लौटना है, जहां से व्यक्ति आया था। साथ ही, आगन्तुक के अभिमान-मिश्रित प्रश्न का यही उपयुक्त उत्तर था।
सुन्दरेश ऐय्यर नामक एक व्यक्ति, जिनका पहले भी जिक्र आया है, श्रीभगवान् के परम भक्त थे । जव उन्होंने यह सुना कि उनका दूसरे नगर मे तवादला होने वाला है, तो उन्होंने अत्यन्त शोक भरे शब्दो मे श्रीभगवान् से शिकायत करते हुए कहा, “गत ४० वर्षों से भगवान् के साथ रह रहा हूँ और अब मैं दूर चला जाऊंगा । भगवान् के बिना मैं कैसे रहूंगा।"
श्रीभगवान् ने उनसे पूछा, "आप कितने अरसे से भगवान के साथ रह रहे हैं "
उत्तर था, "चालीस वप।"
तव भक्ता को सम्बोधित करते हुए श्रीभगवान् ने कहा, "यहां एक ऐसे महानुभाव हैं जो पिछले ४० वर्षों से मेरा उपदेश सुन रहे है और अब वह कहते हैं कि वह भगवान् से दूर जा रहे है ।" इस प्रकार श्रीभगवान ने अपनी सावलोकिक उपस्थिति की ओर ध्यान खीचा । सुन्दरेश ऐय्यर का तबादला रद्द हा गया था।
आश्रम का भवन भवता तथा विश्व भर में फैले हुए उन व्यक्तियो का जो यहां शारीरिक रूप से उपस्थित नही हो सकते थे, केन्द्र बना रहा । ऊपर