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रमण महर्षि
मे लाया गया। एक अन्य कुत्ते के व्यवहार से भी इस सम्बन्ध मे चेतावनी मिली थी। कुछ वप पूव पलानीस्वामी ने विरूपाक्ष कन्दरा मे हमारे साथ रहने वाले एक छोटे कुत्ते को झिडक दिया था । वह कुत्ता दौड कर सीधे सखतीर्थम् सरोवर की ओर चला गया और शीघ्र ही तालाब मे उसका मृत शरीर तैरता दिग्वायी दिया। पलानीस्वामी तथा आश्रम के अन्य मब आवासियो मे कहा गया कि आश्रम के कुत्ते तथा अन्य पश समझदार है और उनके अपने सिद्धान्त है, उनके साथ रुक्षतापूर्वक व्यवहार नही किया जाना चाहिए। हम नही जानते कि इन शरीरो मे कौन-मी आत्माएं निवास कर रही हैं और अपने अपूर्ण कम का कौन-मा अश पूग करने के लिए उन्हे हमारी सगति की अपेक्षा है।"
आश्रम में अन्य कुत्ते भी थे जिन्होंने ममझदारी और उच्च मिद्धान्तो का परिचय दिया । स्कन्दाश्रम मे जब किसी कुत्ते की मृत्यु होती, तो श्रीभगवान् उमके निकट विद्यमान रहते, उसके मृत शरीर को समारोह के माथ दफनाया जाता और उस पर प्रस्तर का स्मारक खडा किया जाता। वाद के वर्षों में जव आश्रम के भवन वन कर तैयार हो गये और विशेपरूप मे श्रीभगवान् की शारीरिक शक्ति का ह्रास होने लगा तो मानव-भक्त अपनी मनमानी करने लगे और आश्रम मे पशु-भक्तो का प्रवेश निषिद्ध कर दिया गया।
अन्तिम कुछ वर्षा तक बन्दर श्रीभगवान् की शय्या के पास विडकी मे आते रह और सलाखो के बीच से झांकते रहे । कई वार वन्दरियां अपने बच्चो को छाती मे चिपकाये हुए श्रीभगवान् के निकट आती थी मानो वे उन्हें अन्य मानवीय माताओ की तरह अपने बच्चे दिखाना चाहती हो । एक प्रकार के ममझौते के रूप मे, सेवको को वन्दगे को दूर भगाने की आना तो दे दी गयी, परन्तु उनमे यह कहा गया कि वे उन्हें हटाने से पहले उनके सामने केला फेंके।
जव तक श्रीभगवान् अत्यन्त दुर्वल नही हो गये, वह प्रतिदिन प्रात काल सात बजे के बाद और मायकाल पांच बजे के लगभग पहाडी पर मैर करने जाते थे । एक सायकाल वह घूमने न जाकर स्कन्दाश्रम चले गये। जब वह निर्धारित समय पर वापस नही आये, कुछ भक्त उनके पीये पहाडी की ओर गये, दूसरे झुड वना कर खडे हो गये और आपम में एक दूसरे में कहने लगे, आखिर श्रीभगवान् कहाँ चले गये, इसका अभिप्राय क्या है, और अब क्या करना चाहिए। कई भक्त मभा-कक्ष मे उनकी प्रतीक्षा करने लगे। बन्दगे का एक जोडा मभा-कक्ष के द्वार पर आया और निभय होकर अन्दर चला गया और श्रीभगवान् की वाली शय्या को चिंतित होकर देखने लगा।
श्रीभगवान् के इस समार मे प्रयाण करने से कुछ वप पूव, वन्दगे का आश्रम मे प्रवेश निपिद्ध हो गया था । मभा-वक्ष के बाहर ताड के पत्तो की