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________________ रमण महर्षि स्वर्गवास १४ अप्रैल को, समय और तिथि की दृष्टि से गुड-फ्राइडे के मध्याह्नोत्तर से थोड़ी देर बाद हुआ था। दोनो समय सर्वथा उपयुक्त हैं । मध्यरात्रि और मकरसक्रान्ति वह समय है जब सूर्य भगवान् पृथ्वी पर उदित होना प्रारम्भ कर रहे होते हैं और वासन्तिक विपुव को दिन और रात बरावर होते हैं तथा दिन लम्बा होना शुरू होता है ।। सुन्दरम ऐय्यर ने उन दिनो दो रुपये मासिक के अत्यल्प हास्यास्पद वेतन पर एक एकाउण्टेण्ट के यहां अर्जीनवीस के रूप मे कार्य प्रारम्भ किया था। कुछ वर्ष बाद उन्हे एक अप्रमाणित वकील अर्थात् ग्रामीण वकील के रूप मे प्रैक्टिस करने की आज्ञा मिल गयी थी। उनकी प्रैक्टिम खूब चल निकली, लक्ष्मी की उन पर अपार कृपा हुई और उन्होंने एक मकान' बनवाया । इसी मकान में बालक रमण का जन्म हुआ था। यह मकान काफी खुला था। इसका एक हिस्सा अतिथियो के लिए सुरक्षित था । श्री सुन्दरम ऐय्यर वडे सामाजिक और अतिथि-भक्त थे। वह सरकारी अधिकारियो और कस्बे मे आने वाले नवागन्तुको को अपने घर ठहराया करते थे। यही कारण है कि वह अपने कस्वे के प्रतिष्ठित व्यक्ति समझे जाते थे और इसका उनके व्यावसायिक कार्य पर भी बहुत अच्छा असर पड़ा। श्री ऐय्यर ने बहुत सफलता प्राप्त की, परन्तु परिवार को एक विचित्र विधि-विधान का सामना करना था। ऐसा कहा जाता है कि एक वार एक घुमक्कड साघु उनके किसी पूर्वज के घर भिक्षा मांगने के लिए आया था। जब परिवार के लोगो ने भिक्षा देने से इन्कार कर दिया तव उस साधु ने शाप दिया कि उनकी सन्तान की हर पीढी मे से एक व्यक्ति साघु बनेगा और उसे भिक्षा मांगनी पडेगी। इसे शाप समझें या वरदान, साधु का कथन पूरा हुआ। सुन्दरम ऐय्यर के एक चाचा ने गेरुए वस्त्र धारण कर लिये थे और दण्ड तथा कमण्डल हाथ मे लेकर घर का परित्याग कर दिया था, उनके वडे भाई पडोस की एक जगह देखने का बहाना करके घर से निकल गये थे और बाद मे ससार का परित्याग करके सन्यासी बन गये थे। सुन्दरम ऐय्यर को अपने परिवार के सम्बन्ध मे कोई विचित्र बात दिखायी नही देती थी। वेंकटरमण का एक सामान्य और स्वस्थ वालक के रूप मे विकास हुआ । थोडे अरसे के लिए उसे स्थानीय स्कूल मे भेजा गया और जब वह ग्यारह वर्ष का हुआ, उसे दिन्दीगुल के एक स्कूल मे भेजा गया । उसका भाई नागस्वामी था, जो उससे दो साल वडा था। उसके छ साल बाद तीसरे . अब आश्रम ने इस मकान को अपने अधिकार में ले लिया है। यहाँ दैनिक पूजा होती है और यह भक्तों के लिए तीर्थ-स्थल के रूप मे खुला रहता है।
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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