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शान्तोदिताव्यपदेश्यधर्मानुपाती धर्मो 2411
चाहे वे सुप्त हों या सक्रिय हों या अव्यक्त हों। सारे गुण-धर्म आधार तत्व में अंतर्निष्ठ होते है।
रूस के एक महान उपन्यासकार लिओ टाल्सटाय के बारे में कहा जाता है कि एक दिन जब वह जंगल में घूम रहे थे तो अचानक उन्होंने देखा कि एक चट्टान पर एक गिरगिट धूप में मजे से बैठा है। टाल्सटाय उस गिरगिट से कहने लगे, 'तुम्हारा हृदय धड़क रहा है, चारों ओर धूप खिली हुई है, तुम प्रसन्न हो।' और क्षणभर के बाद ही वे बोले, 'लेकिन मैं प्रसन्न नहीं हूं।' गिरगिट क्यों प्रसन्न है और मनुष्य प्रसन्न क्यों नहीं है? संपूर्ण सृष्टि में चारों और उत्सव चल रहा है, लेकिन मनुष्य आनंदित क्यों नहीं है? मनुष्य के अतिरिक्त पेडू-पौधे, जीव-जंतु, हर कोई क्यों स्वयं के साथ और संपूर्ण अस्तित्व के साथ बहुत ही सुंदर ढंग से जुड़ा हुआ है? मनुष्य ही केवल अपवाद क्यों है? मनुष्य को क्या हो गया है ? कौन सा दुर्भाग्य उस पर टूट पड़ा है? जितने गहरे से खोज की शुरूआत होता है, उसी समझ से ही मार्ग की शुरुआत होती है, उसी समझ के माध्यम से तुम मनुष्य के रोग का हिस्सा नहीं रह जाते । तुम उसका अतिक्रमण करने लगते हो।
गिरगिट वर्तमान में जीता है। गिरगिट को न तो अतीत का कुछ पता है, न ही भविष्य का कुछ है। गिरगिट तो बस अभी और यहीं धूप का आनंद ले रहा है। वर्तमान का क्षण ही गिरगिट के लिए सब कुछ है, लेकिन मनुष्य के लिए वर्तमान का क्षण पर्याप्त नहीं है और यहीं से रोग का प्रारंभ होता है, क्योंकि जब भी होता है, बस एक क्षण ही होता है। दो क्षण एक साथ कभी नहीं होते हैं। और जहां कहीं भी तुम होओगे, हमेशा वर्तमान में ही होओगे। अतीत अब है नहीं, और भविष्य अभी नहीं है। और हम भविष्य के लिए जो कि अभी आया नहीं है, और अतीत जो कि कभी का बीत है सब कुछ खोए चले जाते हैं।
जैसे गिरगिट चट्टान पर धूप सेंक रहा है, उस क्षण धूप का आनंद ले रहा है, ठीक उसी तरह ध्यानी होता है। वह भी अतीत और भविष्य दोनों को छोड़कर वर्तमान क्षण में जीता है।
अतीत और भविष्य को छोड़ देने का क्या अर्थ है?
इसका अर्थ है विचार को गिरा देना, क्योंकि सभी विचार या तो अतीत उन्मुख होते हैं या भविष्य उन्मुख होते हैं। कोई भी विचार वर्तमान से संबंधित नहीं होता है। विचार के साथ वर्तमान काल नहीं जुड़ा होता है होता है –या तो विचार मृत होता है या अभी उसका जन्म ही नहीं हुआ है। विचार कभी भी यथार्थ का हिस्सा नहीं होता विचार या तो स्मृति का हिस्सा होता है या कल्पना का विचार