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________________ बढ़ाते हो, तो उसमें किसी तरह की ऊर्जा का अनुभव नहीं होता है। ऊर्जा का प्रवाह मेहमान की ओर होता ही नहीं है। उसकी ओर केवल एक निष्प्राण हाथ ही आगे बढा हआ होता है। जब भी तुम कुछ ऊपर-ऊपर से करते हो तो तुम्हारे भीतर द्वंद्व पैदा हो जाता है। वह करना सच्चा नहीं है, उसमें तुम मौजूद नहीं होते। ध्यान रहे, जो कुछ भी तुम करते हो -अगर तुम उसे कर रहे हो तो उसे समग्रता से करना। अगर नहीं करना चाहते हो, तो बिलकुल मत करना। जो भी करो उसमें समग्रता का ध्यान रखना। क्योंकि करना महत्वपूर्ण नहीं है, उसमें समग्रता महत्वपूर्ण है। अगर ऐसे आधे-अधूरे मन से तुम कुछ भी करते रहते हो –एक मन करना चाहता है, एक मन नहीं करना चाहता है –तो तुम अपने अंतस की खिलावट में बाधा बन रहे हो। धीरे -धीरे तुम उस प्लास्टिक के फूल की तरह हो जाओगे, जिसमें न तो कोई सुगंध होती है, और न ही कोई जीवन होता है। एक बार ऐसा हुआ : मल्ला नसरुददीन एक पार्टी में गया था। जब वह पार्टी से जाने लगा तो उसने मेजबान -महिला से कहा, 'मुझे आमंत्रित करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। मुझे अभी तक जिन पार्टियों में आमंत्रित किया गया था, उनमें से यह सबसे अच्छी पार्टी है।' और पार्टी कुछ विशेष थी भी नहीं, बिलकुल साधारण सी थी। वह मेजबान महिला चकित होकर बोली, 'ओह, ऐसा कैसे कह रहे हैं आप।' इस पर मुल्ला ने जवाब दिया, 'लेकिन मैं तो ऐसा ही कहता हूं। मैं तो हमेशा से ऐसा ही कहता आ रहा हूं।' अब यह कहकर तो पूरी बात ही बेकार हो गई। फिर कहने का कोई मतलब ही नहीं रहा। बाहरी दिखावे और शिष्टाचार का जीवन व्यर्थ है, ऐसा जीवन मत जीओ। प्रामाणिक और सच्चा जीवन जीओ। मैं जानता हूं, तुम्हारे लिए ऊपरी शिष्टाचार, प्रचलित रीति-रिवाजों के अनुसार जीवन जीना ज्यादा सुगम और सुविधापूर्ण है। लेकिन वह धीरे- धीरे तुम्हें मार डालता है। सच्चा और प्रामाणिक जीवन जीना उतना सुविधाजनक नहीं है। वह जोखम से भरा होता है। लेकिन वह जीवन सच्चा होता है, प्रामाणिक होता है। और उस खतरे को, उस जोखम को उठाना मूल्यवान है। उस खतरे और जोखम के लिए तुम्हें कभी भी पछतावा न होगा। जब एक बार उस प्रामाणिक और सच्चे जीवन का, स्वानुभूति का स्वाद तुम्हें लग जाएगा और तुम आनंदित रहने लगोगे -और जब तुम बंटे-बंटे, खंड-खंड और बिखरे हुए नहीं रहोगे, तब तुम जानोगे कि अगर इसके लिए सब कुछ भी दाव पर लगाना पड़े, तो भी वह कुछ नहीं है। उसकी एक झलक के
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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