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व्युत्थाननिरोधसंस्कारयोरभिभवप्रादुर्भावाँ
निरोधक्षणचित्तान्वयो निरोधपरिणामः । 911
निरोध परिणाम मन का वह रूपांतरण है जब मन में निरोध की अवस्थिति व्याप्त हो जाती है, जो तिरोहित हो रह भाव - संस्कार और उसके स्थान पर प्रकट हो रहे भाव - विचार के बीच क्षणमात्र मात्र को घटती है।
तस्य प्रज्ञान्तवाहिता संस्कारत् ।। 1011
'यह प्रवाह पुनरावृत्त अनुभूतियों-संवेदनाओं द्वारा शांत हो जाता है।'
जैसा कि मुझे कहा गया है कि परंपरागत रूप से जर्मनी में चिंतन की दो विचारधाराएं हैं।
औद्योगिक और व्यावहारिक, जर्मनी के उत्तरी भाग का दर्शन सिद्धांत है स्थिति गंभीर है लेकिन फिर भी निराशाजनक नहीं है। जर्मनी के दक्षिणी भाग का दर्शन अधिक भावमय है लेकिन कुछ कम व्यावहारिक मालूम होता है स्थिति निराशाजनक है, लेकिन फिर भी गंभीर नहीं है। अगर तुम मुझसे पूछो, तो स्थिति इन दोनों में से कुछ भी नहीं है न तो निराशाजनक है और न ही गंभीर है। और मैं कर रहा हूं मनुष्य की स्थिति की ।
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मनुष्य की स्थिति गंभीर मालूम होती है, क्योंकि हमें सदियों सदियों से गंभीर होने की शिक्षा दी जाती रही है। मनुष्य की स्थिति निराशाजनक मालूम होती है, क्योंकि हम स्वयं के साथ कुछ गलत कर रहे हैं। हम ने अभी तक यह जाना ही नहीं कि सहज और स्वाभाविक होना ही जीवन का लक्ष्य है, और जीवन में जिन सभी लक्ष्यों की हमें शिक्षा दी जाती है, वे हमें और और असहज अस्वाभाविक बना देते हैं।
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स्वाभाविक होने, अस्तित्व की लय के साथ एक हो जाने को ही पतंजलि संयम कहते हैं। स्वाभाविक होना और अस्तित्व की धड़कन के साथ एक हो जाना ही संयम है संयम को आरोपित नहीं किया जा सकता है। संयम को बाहर से थोपा नहीं जा सकता है। व्यक्ति के अंतस - स्वभाव का खिल जाना ही संयम है जो आपका स्वभाव है, वही हो जाना संयम है। अपने स्वभाव में वापस लौट आना संयम है। अपने स्वभाव में लौटना कैसे हो? मनुष्य का स्वभाव क्या है? जब तक हम स्वयं के ही भीतर गहरे नहीं जाते, हम कभी नहीं जान सकेंगे कि मनुष्य का स्वभाव क्या है।