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________________ तुम मेरे साथ केवल तभी रह सकते हो, जब तुम मन को आश्वस्त करने का प्रयत्न नहीं करते, तब मैं तुम्हें उलझन और परेशानी में नहीं डाल सकूँगा, क्योंकि तब तुम किसी विचार को नहीं पकड़ोगे। तब मैं कितनी ही बातें करता रहूं, कभी एक बात को एक ढंग से कहूं, कभी उसी बात को दूसरे ढंग से कहं, तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यह सभी तुम्हारे मन को मिटा देने की विधियां हैं। और इस भेद को तुम्हें समझ लेना है। अगर तुम किसी सदगुरु के पास जाते हो, तो उसके पास अपना एक अनुशासन होता है, अपना एक धर्मशास्त्र होता है, कुछ सुनिश्चित धारणाएं और सिद्धांत होते हैं। ऐसे भी सदगुरु हैं जिनका सिद्धांत ही सिद्धांत-शून्यता का होता है, या कहो कि उनका कोई सिद्धांत ही नहीं होता लेकिन फिर वह सिदधांत -शून्यता का उनका सिद्धांत ही अपने कठोर होता है, और वही उनका धर्मशास्त्र बन जाता है। मेरे पास कोई धारणा या सिद्धांत नहीं है, यहां तक कि सिद्धांत-शून्यता का भी सिद्धांत नहीं है। बह अगर तुम मन के द्वारा मुझे समझने की कोशिश करोगे, तो मैं तुम्हें परेशानी में डाल दूंगा, तुम्हें गड़बड़ा दूंगा, और तुम अधिकाधिक उलझन में पड़ते चले जाओगे। बस, तुम तो मुझे सुनना। इसे मेरे साथ होने का एक बहाना होने देना, और इस बारे में सब कुछ भूल जाना कि मैं क्या कहता हूं। मैं जो कहता हं उसे एकत्रित मत करते चले जाना, उसे संचित मत कर लेना। मन को संचय करने की पुरानी आदत है, या कहें कि मन संचय है। अगर संचय करना बंद कर दो, तो मन धीरे - धीरे अपने से मिटने लगता है। और अलग – अलग दृष्टिकोणों से मुझे सुनते हुए, जो कि एक -दूसरे के एकदम विपरीत हैं, धीरे – धीरे तुम जान लोगे कि सारे दृष्टिकोण खेल मात्र हैं। और ध्यान रहे, कोई सा भी दृष्टिकोण तुम्हें सत्य तक नहीं ले जा सकता। जब तुम सभी दृष्टिकोण, सभी विचार दृष्टियां, सोचने के सारे डरें गिरा देते हो, तो अचानक तुम पाते हो कि सत्य आ उतरा है। अभी तक तुम धारणा और दृष्टिकोणों में ही इतने उलझे रहे, उनको लेकर ही इतने चिंतित और परेशान रहे कि इसी कारण तुम सत्य को न जान सके। जो जैसा मौजूद है वही सत्य है। बुद्ध ने इसे तथाता कहा है। तथाता का अर्थ है. जैसा है ऐसा ही, वह मौजूद है ही-जैसा जो है वही सत्य है। तो जब तुम किसी न किसी भांति यहां तक आ ही गए हो, तो इस अवसर को, इस द्वार को चूक मत जाना। और तुमने पूछा है, ' आप कैसे इसकी व्यवस्था करते हैं। आप यह कैसे जान लेते हैं कि जिसे आप करुणावश बांटना चाहते हैं, कोई उसे ग्रहण करने के लिए तैयार है? इन बातों को घटाया नहीं जाता है, यह तो अपने से घटती हैं। अगर तुम प्यासे हो, तो पानी के स्रोत को खोज ही लेते हो। और अगर जल का स्रोत अस्तित्व रखता है, तो जल का वह स्रोत हवाओं के
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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