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जब कोई कहता है कि वह धनवान है, तो इससे उसका क्या मतलब होता है? इससे उसका मतलब होता है कि बैंक में उसके पास कुछ धन है।
लेकिन यह भी एक खेल है, रुपया-पैसा एक खेल है। क्योंकि समाज धन में विश्वास करता है, तो इस कारण से यह खेल इसी तरह चलता चला जाता है।
मैंने एक कंजस के बारे में सुना है-जिसने सोने का खजाना अपने बगीचे में कहीं छिपाकर रखा हुआ था। प्रतिदिन वह बगीचे में जाता और थोड़ी मिट्टी हटाता और अपनी सोने की ईंटों को देखता, और फिर से उन्हें छिपा देता। और फिर बहुत ही खुशी-खुशी, प्रसन्न चित्त, और मुस्कुराते हुए वापस लौट आता।
लेकिन धीरे – धीरे उसके एक पड़ोसी को कुछ शक होने लगा, क्योंकि प्रतिदिन वह ऐसा करता थाऐसा लगता था जैसे कि वह कोई धार्मिक क्रिया -कांड कर रहा हो। प्रतिदिन सुबह ही सुबह वह वहा आता-जैसे कि प्रार्थना करने आया हो - थोड़ी सी जमीन को खोदता, अपनी सोने की ईंटों को सुबह के सूरज की किरणों में चमकते हुए देखता, और उनको देखते ही उसके भीतर भी कुछ खिल जाता, और फिर सारे दिन वह बहुत खुश रहता।
एक रात पड़ोसी ने सोने की सारी ईंटें निकाल लीं। सोने की ईंटों के स्थान पर उसने सामान्य ईंटें वहां पर रख दी और उन्हें फिर से वैसे ही मिट्टी से ढंक दिया। दूसरे दिन जब वह कंजूस आया तो उसने खूब जोर-जोर से रोना चिल्लाना शुरू कर दिया और कहने लगा वह तो लुट गया, वह तो मर गया। उसका पड़ोसी जो कि बगीचे में ही खड़ा हुआ था, उसने पूछा, 'क्या हुआ, तुम क्यों रो रहे हो?' वह बोला, 'मैं लुट गया ह! मेरी सोने की बीस ईंटें चोरी चली गई हैं।'
पड़ोसी बोला; चिंता मत करो, क्योंकि ऐसे भी तुम उनका कुछ उपयोग तो करने वाले थे नहीं। तो तुम पहले जो कुछ कर रहे थे, वह इन मिट्टी की ईंटों को लेकर भी कर सकते हो। हर रोज सुबह आना, जमीन को खोदना, ईंटों को देख लेना और खुश ही लेना और वापस लौट जाना। क्योंकि पहली तो बात यह है कि तुम उनका कभी उपयोग करने वाले नहीं हो, तो चाहे वे सोने की हों या मिट्टी की हों, उससे अंतर क्या पड़ता है?'
तुम्हारे पास धन हो सकता है, लेकिन उससे कुछ अंतर नहीं पड़ता। तुम्हारे पास धन नहीं भी हो सकता है, उससे भी कुछ अंतर नहीं पड़ता। हो सकता है समाज ने तुम्हें बहुत सम्मप्त दिया हो, तुम्हारे पास बड़ी-बड़ी डिग्रियां हों, बड़े-बड़े पुरस्कार हों, प्रशंसा मिली हो, सर्टिफिकेट हों-उसका
कोई मूल्य नहीं है, यह तो एक खेल है। जब तक तुम इस खेल के पार नहीं हो जाते और तुम्हें इस बात का बोध नहीं हो जाता कि इस खेल में तुम स्वयं को कभी न खोज पाओगे, कि तुम कौन हो. तब तक समाज तुम्हें मूर्ख बनाता रहेगा और तुम्हें भ्रांत धारणाएं दिए चला जाएगा कि तुम कौन