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तिब्बत में वे चिकित्सक को सिखाते हैं कि जब रोगी के हाथ को या नाड़ी को पकड़ो, तो एक खास ढंग से श्वास लो, केवल तभी चिकित्सक रोगी की श्वास –प्रक्रिया को ठीक से जान सकेगा। और जब एक बार रोगी की श्वास-प्रक्रिया को चिकित्सक ठीक से जान लेता है, तो वह रोगी की पूरी बीमारी को जान लेता है। और अब चिकित्सक को पता होता है कि क्या करना चाहिए। साधारणतया तो डाक्टर मरीज के लक्षणों की जांच करते समय, स्वयं उस स्थिति में नहीं जाते जिसमें रोगी है। लेकिन तिब्बत में -और उनकी पूरी विधि पतंजलि के योग पर आधारित है -पहले तो डाक्टर को स्वयं उस विशेष आयाम में आना होता है जहां वह रोगी को अनुभव कर सके, देख सके कि रोगी की समस्या कहां है, क्या है, कैसी है -रोगी की श्वास प्रक्रिया में कहां पर बाधा है, कहा पर उसकी श्वास अवरुद्ध है, कहां पर आघात करना है, कहां सब से ज्यादा काम करना है।
यही बात एक्यूपंक्चर के संबंध में भी सच है। एक्यूपंक्चर ताओवादी योग से विकसित हुआ है। भीतर ऊर्जा की, प्राण की क्रियाएं, गतियों को देखते हुए उन्हें यह ज्ञात हो गया कि शरीर में सात सौ बिंदु हैं। जो कि ऊर्जा बिंदु हैं, और उन बिंदुओं पर दबाव डालने भर से शरीर का पूरा ऊर्जा क्षेत्र परिवर्तित और रूपांतरित हो सकता है। जब तुम्हारे सिर में दर्द हो तो एक्यूपंक्चर करने वाला चिकित्सक शायद तुम्हारा सिर न छू पाए; उसकी कोई जरूरत भी नहीं। वह कहीं और छुएगा, क्योंकि शरीर की ऊर्जा विपरीत ध्रुवता में, ऋणात्मक और धनात्मक में अस्तित्व रखती है। अगर तुम्हारे सिर में दर्द है तो कहीं दूसरी जगह, कहीं विपरीत ध्रुव पर वह बिंदु को खोजकर उसे सुई से भेद देगा।
सुई से भेदने की भी जरूरत नहीं होती है। एक्यूप्रेशर में -अपने अंगूठे का थोड़ा सा दबाव और सिर का दर्द गायब हो जाता है। और यह चमत्कार है कि ऐसा होता कैसे है? सुई को चुभाने से या हाथ के अंगूठे से दबाने से पूरा ऊर्जा क्षेत्र रूपांतरित हो जाता है। दूसरी जगह पर उसे दबाने से ऊर्जा का प्रवाह जो कि अवरुद्ध हो गया था, वापस प्रारंभ हो जाता है, अब व्यक्ति के पास एक अलग ही ऊर्जा होती है।
पश्चिम में अब एक्यूपंक्चर अधिकाधिक वैज्ञानिक रूप लेता जा रहा है, और विशेषकर सोवियत रूस में। क्योंकि रूस में एक नए ढंग की फोटोग्राफी खोज ली गई है क्रिलियान फोटोग्राफी। और वे सात सौ बिंदु उस फोटोग्राफी दवारा उतारे चित्रों से देखने संभव हैं। और ठीक उन्हीं सात सौ बिंदुओं को बिना किसी माध्यम के, बिना किसी फोटोग्राफी के, बिना किसी कैमरे के ताओवादी योगियों ने जाना। उन्हें इन बिंदुओं का पता अपने ही भीतर उतरने पर चला।
चौथा है उदान, वाणी और संप्रेषण। जब तुम बोलते हो, तो चौथे प्रकार के प्राण का उपयोग होता है।
और इस प्राण को प्रशिक्षित किया जा सकता है। अगर यह प्राण प्रशिक्षित कर लिया जाए तो व्यक्ति के बोलने में, भाषण देने में, गीत गाने में एक तरह का सम्मोहन होगा। तब वाणी में एक तरह का सम्मोहन होगा। तब बस, आवाज को सुनकर ही लोग चुंबक की तरह खिंचे चले आते हैं।