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हो, तो तुम उसके अनुभवों को भी अपने अनुभव के तल पर ले आओगे। तुम अपने ढंग से ही उसकी व्याख्या करोगे। अगर तुम्हें बुद्ध भी मिल जाएं, तो तुम्हें उनका बुद्धत्व दिखाई नहीं पड़ेगा, तुम्हें केवल उनका शरीर दिखाई पड़ेगा। क्योंकि हम केवल वही देख सकते हैं जो हम स्वयं हैं। हम उससे अधिक कुछ नहीं देख सकते। हम ही अपनी सीमा हैं, हम ही अपना बंधन हैं।
स्मरण रहे, क्षुद्र चीजों के साथ तादात्म्य स्थापित मत करना।
ऐसे से लोग हैं जो केवल खाने के लिए ही जी रहे हैं। वे जीने के लिए नहीं खाते हैं, वे खाने के लिए जीते हैं। और वे खाते ही रहते हैं, खाते ही चले जाते हैं। वे बस भोजन ही बन जाते हैं और कुछ नहीं। वे रेफ्रिजरेटर की तरह भोजन को अपने में भरते चले जाते हैं। और वे निरंतर खाते
चले जाते हैं और वे सोचते भी नहीं हैं, कि वे कर क्या रहे हैं? भोजन ही उनका एकमात्र जीवन होता है - फिर अगर पूरा जीवन नीरस हो जाए तो कोई खास बात नहीं है।
एक बार मुल्ला नसरुद्दीन बीमार पड़ गया। उसकी पत्नी ने पूछा, 'क्या में डाक्टर को बुला लाऊं? मुल्ला बोला, नहीं, पशुओं के डाक्टर को बुलाओ।'
मुल्ला की पत्नी बोली, 'आप कहना क्या चाहते हैं? आप पागल हो गए हैं या फिर आपको बुखार बहुत तेज चढ़ा हुआ है? आप पशुओं के डाक्टर को ही क्यों बुलाना चाहते हैं?'
मुल्ला बोला, 'मैं पशुओं की तरह ही जी रहा हूं। मैं खच्चर की भांति काम में जुटा रहता हूं, मुझे लगता है जैसे मैं गधा हूं और मैं गाय के साथ सोता हूं। तुम पशुओं के डाक्टर को ही बुलाओ, मैं कोई आदमी थोड़े ही हूं। केवल पशुओं का डाक्टर ही मेरी हालत को समझ सकता है।'
थोड़ा अपने ऊपर ध्यान दो अपना निरीक्षण करो कि तुम अपने साथ क्या कर रहे हो? बस, जैसे तैसे जीवन को व्यतीत कर रहे हो। बस, भोजन से स्वयं को भर रहे हो, या फिर ज्यादा से ज्यादा कामवासना के आसपास चक्कर काट रहे हो या स्त्री या पुरुषों के पीछे भाग रहे हो।
एक बहुत ही प्यारी स्त्री ने मुझ से पूछा है, 'भगवान, मैं अकेली रहूं या मैं पुरुषों के पीछे भागती रहूं?"
वह स्त्री अपने यौवन को पार कर चुकी है, उसका यौवन बीत चुका है। अब तो अकेले और आनंदित रहने का समय है, अब तो पुरुषों के पीछे भागना मूढ़ता ही होगी। तो मैंने उससे कहा कि अब इसकी कोई जरूरत नहीं। लेकिन पश्चिम में ऐसी अड़चन है कि एक वृद्ध स्त्री को भी युवा होने का दिखावा करना पड़ता है और वे पुरुषों के पीछे भागती रहती हैं, क्योंकि वहां पर केवल यही उनका जीवन है। अगर पश्चिम में स्त्री या पुरुष की कामवासना तिरोहित हो जाती है, तो वे लोग समझने लगते हैं कि