________________
जैसे रुई आदि से अपना तादात्म्य बना लेने से योगी आकाशगामी हो सकता है।
सा वर्ष पहले दुनिया के महानतम विचारकों में से एक, फ्रेडरिक नीत्शे ने यह घोषणा कर दी कि
परमात्मा मर गया है। नीत्शे ऐसी बात की घोषणा कर रहा था जो प्रत्येक व्यक्ति के सामने स्पष्ट होती जा रही थी। उसने तो दुनिया के उन सभी विचारकों की, विशेषकर जो लोग विज्ञान में उत्सुक थे उन लोगों के मन की बात कह दी थी। क्योंकि विज्ञान रोज –रोज तथाकथित धर्मों के अंधविश्वास के विरुद्ध जीत रहा था और विज्ञान की इतनी अधिक जीत हो रही थी, विज्ञान दुनिया पर इस तेजी से छा रहा था कि यह लगभग सुनिश्चित ही था कि भविष्य में परमात्मा का अस्तित्व नहीं रह सकता, धर्म का अस्तित्व नहीं बच सकेगा। इस बात को पूरी दुनिया में अनुभव किया जा रहा था कि अब परमात्मा इतिहास का हिस्सा हो गया है, और अब परमात्मा म्प्रइजयम में लाइब्रेरी में, किताबों में रहेगा, लेकिन मानव चेतना में नहीं रहेगा। ऐसा लगने लगा था जैसे कि पदार्थ ने परमात्मा के साथ अंतिम निर्णायक युद्ध जीत लिया है।
जब नीत्शे ने यह घोषणा की कि परमात्मा मर गया है, तो उसका इतना ही मतलब था कि अब जीवन किसी रूप में नियति या भाग्य का खेल नहीं रहेगा। जीवन अब सांयोगिक घटना है। क्योंकि परमात्मा जीवन को जोड़ने वाले नियम के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। परमात्मा जीवन को जोड़ने वाली एक इकाई है। परमात्मा वह ऊर्जा है जिसने हर चीज को परस्पर जोड़ा हुआ है। परमात्मा वह परम नियम है जिसने अव्यवस्था के बीच सुव्यवस्था का निर्माण किया हुआ है।
अगर परमात्मा न हो तो परस्पर जोड्ने का नियम भी नहीं रहेगा, संसार में फिर से अराजकता अव्यवस्था हो जाएगी, जीवन एक संयोग मात्र रह जाएगा। परमात्मा के साथ ही सभी आदेश समाप्त हो जाते हैं। परमात्मा के साथ ही सभी नियम और सिद्धांत और आदेश मिट जाते हैं। और परमात्मा के साथ ही जीवन को समझने की सारी संभावना मिट जाती है। और परमात्मा के साथ ही मनुष्य भी बिदा हो जाता है।
नीत्शे ने घोषणा कर दी कि परमात्मा मर गया है और मनुष्य अब स्वतंत्र है। लेकिन सचाई तो यह है जब परमात्मा मर गया है, तो मनुष्य का अस्तित्व भी नहीं रह जाता है। तब तो मनुष्य एक पदार्थ मात्र रह जाता है, इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं-फिर मनुष्य की व्याख्या की जा सकती है, फिर मनुष्य कोई रहस्य नहीं रह जाता, उसमें कोई गहराई नहीं रह जाती, उसका कोई विराट रूप नहीं रह जाता, उसका कोई अर्थ नहीं रह जाता, उसका कोई महत्व नहीं रह जाता है –फिर तो मनुष्य मात्र एक सांयोगिक घटना बनकर रह जाता है। फिर तो आदमी का जन्म भी सांयोगिक घटना होगी, और मृत्यू भी सांयोगिक घटना होगी।