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नहीं है। उसके पास जाने को कोई जगह नहीं है, उसका कोई लक्ष्य नहीं है। झेन के पास कोई लक्ष्य या किसी साध्य प्राप्ति का साधन या कोई विधि नहीं है। वह परम साध्य है।
झेन को समझना बहुत कठिन है। क्योंकि अगर झेन को समझना हो तो तुम्हें अपना ईसाई, हिंदू मुसलमान, जैन होने को गिरा देना होगा। वह सब गिरा देना होगा, जो तुम अब तक साथ में लिए रहे हो। इन सब नासमझियों को छोड़ देना होगा। यह एक तरह की रुग्णता है। झेन को समझना उसकी आंतरिक गुणवत्ता के कारण कठिन नहीं है, बल्कि तुम्हारे अपने बंधे हुए संस्कारित मन के कारण समझ पाना कठिन है। अगर तुम ईसाई या हिंदू की दृष्टि से झेन को समझना चाहो, तो नहीं समझ सकोगे कि झेन क्या है। झेन तो एकदम शुद्ध दृष्टि है। जो दृष्टि किसी धर्म, मत, वाद, सिद्धांत से आच्छादित है वह झेन को समझने से चूक जाएगी। झेन इतना शुदध है कि अगर एक शब्द भी मन में उठा कि तुम झेन को चूक जाओगे। झेन तो संकेत है, इशारा है।
अभी कल रात ही मैं पढ़ रहा था। एक महान झेन संत चाउ-चो से किसी ने पूछा, ' धर्म का सार क्या है?' वह मौन पहले की भाति ही बैठा रहा, जैसे कि उसने शिष्य की बात सुनी ही न हो। शिष्य ने फिर से दोहराया, 'कृपया बताएं कि धर्म का सार क्या है?' गुरु जिधर देख रहा था उधर ही देखता रहा, उसने शिष्य की तरफ मुड़कर भी नहीं देखा। शिष्य ने फिर पूछा, 'आपने मेरी बात सुनी या नहीं? आप क्या सोच रहे हैं?
गुरु ने कहा, ' आंगन में लगे हुए सरू के वृक्ष की ओर तो देखो।' बस इतना ही। उसका उत्तर यही है कि आंगन में लगे हुए सरू के वृक्ष की ओर तो क्यौ।' यह ठीक वैसी ही बात है जैसे बुद्ध ने एक फूल हाथ में लेकर झेन के जगत का शुभारंभ किया था। वह उस फूल की ओर एकदम देखे जा रहे थे और हजारों लोग जो उन्हें सुनने के लिए वहां एकत्रित हुए थे समझ ही न सके कि क्या हो रहा है।
तब बुद्ध का एक भिक्षु महाकाश्यप जोर से हंसा। बुद्ध ने महाकाश्यप को बुलाकर वह फूल उसे दे दिया। और जो लोग बुद्ध को सुनने के लिए आए थे, उनसे बुद्ध बोले, 'जो कुछ बोल कर कहा जा सकता है, मैंने तुमसे कह दिया है। और जिसे बोल कर नहीं कहा जा सकता, वह मैंने महाकाश्यप को दे दिया है।'
बुद्ध ने वह फूल महाकाश्यप को देकर बहुत अच्छा किया। क्योंकि उस हंसी के क्षण में ही महाकाश्यप भी खिल उठा; उसका पूरा अस्तित्व उस फूल की तरह खिल गया।
फूल की ओर देखकर बुद्ध क्या कह रहे थे? फूल की ओर देखकर बुद्ध कह रहे थे, 'वर्तमान के इस क्षण में अभी और यहीं में रहो। बस, फूल की ओर देखो और फूल ही हो जाओ।' जौ लोग बुद्ध को सुनने के लिए एकत्रित वे कुछ और ही सोच रहे थे, वे किसी और ही बात की कल्पना कर रहे