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तुम्हारे लिए तालिया बजाए, तुम्हारी प्रशंसा करें -और कहें कि तुम जो भी कर रहे हो एकदम ठीक कर रहे हो। तुम चाहते हो कि सारी दुनिया तुम्हें फूल मालाएं पहनाए, और कहे कि तुम महान हो। लेकिन ऐसी आकांक्षा उठती ही क्यों है?
यह आकांक्षा इसलिए उठती है, क्योंकि कहीं गहरे में तुम अपने प्रति सुनिश्चित नहीं हो, तुम्हें पक्का भरोसा नहीं है कि तुम सच में ही ठीक कर रहे हो या नहीं। अगर तुम सच में ठीक कर रहे हो, तो तुम्हें किसी तरह की प्रशंसा की कोई आवश्यकता नहीं होती है। और अगर तुम सच में ठीक ही कर रहे हो, तो फिर कोई ऐसी आकांक्षा और लालसा नहीं बचती कि लोग तुम्हारे लिए तालियां बजाए और तुम्हारी प्रशंसा करें और तुम्हें फूलमालाएं पहनाएं। इसकी कोई आवश्यकता ही नहीं होती।
इसकी आवश्यकता तभी होती है, जब हम स्वयं के प्रति संदिग्ध होते हैं, उलझे हए, अस्पष्ट, अनिश्चित होते हैं -तभी इसकी आवश्यकता होती है।
और ध्यान रहे, तुम प्रशंसा करने वाले लोगों की भीड़ अपने आसपास एकत्रित कर सकते हो, लेकिन उससे तुम्हें कोई मदद मिलने वाली नहीं है। उससे तुम्हें कुछ न मिलेगा। हो सकता है तुम स्वयं को ही धोखा दो, लेकिन उससे तुम्हें कुछ भी नहीं मिलेगा, उससे कुछ भी मदद नहीं मिलेगी। यही तो राजनीति का खेल है। राजनीति का पूरा का पूरा खेल और कुछ भी नहीं है, सिवाय दूसरों से प्रोत्साहन
और बढ़ावा पाने के अतिरिक्त और कुछ भी. नहीं है। तुम देश के राष्ट्रपति बन जाते हो तो तुम्हें बहुत अच्छा लगता है, अपने आपको ऊंचा और श्रेष्ठ अनुभव करने लगते हो। लेकिन पहली तो बात लोगों से प्रशंसा पाने की आकांक्षा, दूसरों से आदर –सम्मान, बढ़ावा पाने की आकांक्षा का होना इसी बात को दर्शाता है कि कहीं गहरे में तुम बहुत हीन अनुभव करते हो, बहुत इनफीरियर अनुभव करते हो, तुम्हारे लिए स्वयं के अस्तित्व का कोई मूल्य नहीं है। और इस सबको जानने के लिए तुम्हें बाजार में खड़े होकर अपनी बोली लगवाना जरूरी है।
मैंने सुना है कि एक बार मुल्ला नसरुद्दीन अपने गधे के साथ बाजार चला गया। वह उस गधे को बेचना चाहता था, क्योंकि वह उससे तंग आ चुका था। वह खराब से खराब गधों में से एक गधा था। जहां मुल्ला उस गधे को ले जाना चाहता वहा वह कभी नहीं जाता था, वह केवल वहीं जाता जहां वह जाना चाहता था। और इसके अलावा वह दुलत्तिया झाड़ता रहता था और वह कहीं भी, किसी भी जगह झंझट खड़ी कर देता था। और इस तरह से भीड़ में वह मुल्ला के लिए मुसीबतें खड़ी कर देता था। अत: उससे तंग आकर एक दिन वह उसे बाजार में बेचने के लिए ले गर से ग्राहकों ने गधे के बारे में पूछताछ की और मुल्ला गधे के बारे में पूरी कहानी सुनाता रहा कि यह गधा कैसा है, और उसे कितना परेशान करता है। मुल्ला की ऐसी बातें सुनकर कोई भी व्यक्ति उसे खरीदने के लिए तैयार न हुआ। भला ऐसे गधे को कौन खरीदेगा? और इसी तरह से शाम हो गई। सारे दिन लोग आते रहे, और मुल्ला गधे के बारे में पूरी बात सच-सच लोगों को बताता रहा। लोग आते, उसकी बात सुनते और हंसकर चले जाते।