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यह स्वयं से कहने की बात ही नहीं है कि तुम मन नहीं हो, कि तुम शरीर नहीं हो, क्योंकि जो ऐसा
कह रहा है वह भी मन ही है। ऐसे तो तुम कभी भी मन के बाहर न आ पाओगे। यह सब बातें भी मन के द्वारा ही आ रही हैं, इसलिए तुम मन पर ही और-और जोर दिए चले जाओगे। मन बहुत सूक्ष्म है, मन के प्रति बहुत अधिक सजग रहने की आवश्यकता है। मन का उपयोग मत करो। अगर तुम मन का उपयोग करते हो, तो मन मजबूत होता चला जाता है। अगर तुम मन का उपयोग करना बंद कर दो, तो वह अपने से बिदा हो जाता है अपने मन को समाप्त करने के लिए तुम मन का ही उपयोग नहीं कर सकते। तुम्हें यह बात ठीक से समझ लेनी है कि मन का उपयोग मन की ही समाप्ति के लिए नहीं किया जा सकता है।
जब तुम कहते हो, 'मैं शरीर नहीं हूं, ' तो यह बात मन ही कह रहा है। जब तुम कहते हो, 'मैं मन नहीं हूं,' तो यह भी मन ही कह रहा है। सच्चाई को देखो, कुछ भी कहने की कोशिश मत करो। इसके लिए भाषा की, और शब्दों की आवश्यकता नहीं है। बस, एक अंतर्दृष्टि, अपने भीतर भर देखना है, भी कुछ कहना नहीं है।
लेकिन मैं तुम्हारी तकलीफ समझता हूं। एकदम प्रारंभ से ही, बचपन से हमें सिखाया गया है कि देखना नहीं है बल्कि कहना है। जब हम कोई गुलाब का फूल देखते हैं, तो तुरंत कह उठते हैं, कितना सुंदर फूल है। बस, कहा और बात समाप्त हो जाती है। गुलाब का फूल खो जाता है - ऐसा कहकर हमने उसकी हत्या कर दी। अब हमारे और गुलाब के फूल के बीच कुछ खड़ा हो गया। कितना सुंदर फूल है ! इतना कहना, यह शब्द दीवार का काम करता है।
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इस तरह से एक शब्द दूसरे शब्द तक ले जाता है, और एक विचार दूसरे विचार तक ले जाता है और इस तरह से वे श्रृंखलाबद्ध रूप से बढ़ते चले जाते हैं, वे पृथक होकर नहीं बढ़ते हैं। कभी भी कोई विचार अकेला नहीं होता विचार हमेशा झुंड में रहते हैं भीड़ में रहते हैं विचार उन पशुओं की तरह हैं, जो झुंड में रहते हैं। इसलिए एक बार यह कह देना कि 'गुलाब कितना सुंदर है। इतना कहते ही हमने विचारों को जन्म दे दिया, हम पटरी पर आ गए। अब विचारों की गाड़ी ने आगे सरकना शुरू कर दिया। अब यह 'सुंदर' शब्द याद दिलाएगा, जब किसी स्त्री को तुमने कभी प्रेम किया था। गुलाब भूल जाते हैं, सुंदर शब्द भूल जाता है, और अब उसकी जगह होता है विचार, स्वप्न, कल्पना, किसी स्त्री की स्मृति और फिर वह स्त्री और और आगे ले जाएगी। जिस स्त्री से तुमने प्रेम किया था उसका एक सुंदर कुत्ता था। बस अब विचार चले आगे और आगे! और अब इस श्रृंखला का कोई अंत नहीं है।
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अब जरा मन के काम करने के ढंग को देखो कि वह कैसे काम करता है, और उस प्रक्रिया का उपयोग मत करो। मन की इस प्रवृत्ति पर रोक लगाओ। मन हमेशा कार्य करता रहता है, क्योंकि