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________________ और स्मरण रहे, सब का संसार एक जैसा नहीं होता। हर एक व्यक्ति का अपना अलग संसार है, अपनी अलग दुनिया है। क्योंकि सभी के स्वप्न दूसरे के स्वप्न से भिन्न होते हैं। सत्य एक है लेकिन स्वप्न उतने ही हैं जितने मन हैं। अगर व्यक्ति अपने ही मन के स्वप्नों में खोया रहता है, तब वह दूसरे व्यक्ति के साथ संपर्क स्थापित नहीं कर सकता, दूसरे व्यक्ति के साथ नहीं जुड़ सकता है। फिर दूसरे के साथ कोई संबंध नहीं बन सकता है। तब वह अपने ही स्वप्न लोक में खोया रहता है। यही तो होता है जब हम किसी से संबद्ध होना चाहते हैं, तब हम संबद्ध नहीं हो पाते। किसो न किसी तरह हम एक दूसरे को चूकते चले जाते हैं। प्रेमी प्रेमिका ,. पति - पत्नी, मित्र इसी तरह से एक दूसरे को चूक जाते हैं, और चूकते ही चले जाते हैं। और साथ ही उन्हें चिंता भी सताती है कि वे लोगों के साथ संबंधित क्यों नहीं हो पाते हैं। वे कहना कुछ चाहते हैं, लेकिन सामने वाला कुछ और ही समझता है। और फिर वे कहे चले जाते हैं कि मेरा यह मतलब नहीं था, लेकिन फिर भी सामने वाला व्यक्ति कुछ और ही सुनता है। ऐसा क्यों होता है? क्योंकि सामने वाला व्यक्ति जीता है अपने स्वप्न में, तुम जीते हो अपने स्वप्न में। वह उसी पर्दे पर कोई और फिल्म प्रक्षेपित कर रहा होता है, और तुम उसी पर्दे पर कोई और फिल्म प्रक्षेपित करते हो। इसीलिए तो सभी तरह के संबंध तनाव और पीड़ा बन जाते हैं। तब व्यक्ति को लगता है कि अकेले होना ही अच्छा और सुखपूर्ण है। और जब कभी किसी के साथ रहना पड़े तो ऐसा लगता है जैसे किसी कीचड़ में फंस रहे हैं, नर्क में जा रहे हैं। जब सार्च कहता है कि दूसरा नर्क है, तो वह यह अपने अनुभव से कह रहा है। लेकिन दूसरा हमारे लिए नर्क निर्मित नहीं करता है, बस दो स्वप्न स्व-दूसरे से टकरा जाते हैं, स्वप्न के दो संसार एक -दूसरे से संघर्ष में पड़ जाते हैं। दूसरे के साथ संबंध केवल तभी संभव होता है जब व्यक्ति स्वयं के स्वप्न के संसार को गिरा देता है और दूसरा व्यक्ति भी अपने स्वप्न के संसार को गिरा देता है। तब वे एक दूसरे से संबंध द्वैत स्वप्न के संसार स्थापित कर सकते हैं और तब फिर वे दो नहीं रह जाते, क्योंकि वह दुई, वह के साथ ही गिर जाता है। तब वे एक हो जाते हैं। जब दो बुद्धपुरुष एक दूसरे के सामने होते हैं, तो वे दो नहीं होते। इसीलिए कभी दो बुद्धपुरुषों को वार्तालाप करते हुए नहीं देखा गया-क्योंकि वहां पर वार्तालाप के लिए दो मौजूद ही नहीं होते। वे मिलते भी हैं तो शांत और मौन ही बने रहते हैं। ऐसी बहुत सी कथाएं मिलती हैं, जब महावीर और बुद्ध जीवित थे – वे दोनों समकालीन थे और वे एक छोटे से प्रांत बिहार में भ्रमण करते थे। बिहार प्रांत को बिहार इन दोनों बुद्धपुरुषों के कारण ही कहा जाता है' बिहार यानी विहार, जिसका अर्थ होता है भ्रमण करना। क्योंकि बुध और महावीर दोनों पूरे बिहार में घूमते रहते थे, तो यह प्रात उनके भ्रमण का स्थान कहलाने लगा। लेकिन वे कभी भी
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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